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________________ २८ रसिक हकीकत नोंधाई छे. बाकीना सर्गोमां पुण्यपवित्र महापुरुषोनां पौराणिक वर्णनो छे. आ ग्रन्थनो पहेलो अने पंदरमो सर्ग विविध वृत्तोमां रचायो छे. तदुपरांत दरेक सर्गना अंतमां मूकायेला वस्तुपाळना प्रशंसात्मक श्लोको पण जुदा जुदा छंदोमां छे, ज्यारे पौराणिक हकीकतो रजू करता बाकीना सर्गो मोटे भागे अनुष्टुभ्छंदमां लखाया छे. आ बधा छंदोमां शार्दूलविक्रीडित, स्रग्धरा, इंद्रवज्रा, वसंततिलका अने मंदाक्रांता मुख्य छे. काव्यनी भाषा प्रासादिक अने सालंकार छे. आखो ग्रंथ अर्थगांभीर्य अने पदलालित्यनी झमकवाळो छे. दरेक सर्गना अंते वस्तुपाळनी प्रशंसा करता एक बे श्लोको मूकवामां आव्या छे जे वस्तुपाळy अप्रतिम गौरव प्रदर्शित करे छे. आ पद्धति 'सुकृतसंकीर्तन', 'नरनारायणानन्द' अने 'वसंतविलास'कारे पण अखत्यार करी छे. आ महाकाव्यना केटलाक श्लोको 'नरनारायणानन्द', 'उपदेशतरंगिणी' अने 'चतुर्विंशतिप्रबंध'मां उद्धृत थया छे.१ वस्तुपाळ जेवा कविवरे पोताना ज काव्यमां 'धर्माभ्युदय'ना केटलाक श्लोकोने स्थान आपी ते ग्रंथनुं महत्त्व अद्वितीय होवानुं जाहेर कर्यु छे. आथी वस्तुपालना हृदयमां आ ग्रन्थ माटे अनन्य सद्भाव हतो एम पण जणाय छे. सत्पुरुष पोतानी श्लाघा स्वमुखे करे ए अयोग्य लेखाय ए न्याये वस्तुपाले गुरुनी उक्तिओ मूकी हशे एम साधारण अनुमान थाय छे. बीजा कोई कविनी तेवी उक्तिओ नहि ग्रहण करतां गुरुना ज श्लोको केम दाखल कर्या ए प्रश्नना समर्थनमां एम कही शकाय के आ ग्रन्थोक्त गुरुदेवनी उक्तिओए वस्तुपाळना मानस उपर वधु प्रभाव पाड्यो हतो जेनो सचोट पुरावो 'धर्माभ्युदयकाव्य'मांथी उद्धृत करेल गुरुप्रोक्त उक्तिओ आपे छे. आ ग्रन्थ- मुख्यनाम 'संघपतिचरित्र' छे पण तेमां धर्मनो अभ्युदय साधनारां, धर्म उपर प्रकाश वेरनारां वस्तुपाळना धर्मिक सत्कर्मोनुं विवरण रजू करायु होई तेनुं अपर नाम 'धर्माभ्युदयमहाकाव्य' छे एवो अभिप्राय ग्रन्थकार धरावे छे.२ ३. ग्रंथप्रयोजन आ ग्रंथनुं समुत्थान केवा कारणने लई थयुं हतुं ते माटेना स्वतंत्र उल्लेखो कर्ताए रजू कर्या नथी. वस्तुपाळनो अनन्य धर्मप्रेम सुप्रसिद्ध छे. जगतनी व्यामोह भावनानुं भान तेने जीवननी शरुआतमां ज थयुं हतुं. असार संसारनी प्रलोभनजनक अने वंचक भावनाओथी दूर रहेवा तेनुं हृदय हमेशां प्रयत्न करतुं. मनुष्यजन्मनुं साचं श्रेय जगकल्याण अने धर्माचरणमां ज छे एवो गुरु द्वारा मळेलो अमूल्य उपदेश तेनी रगेरगमां वहेतो हतो. सत्त्वशुद्ध भावनाओना प्रतापे तेओ सदाकाळ जीवनसाफल्यनो सर्वोत्कृष्ट मार्ग श्रवण, मनन, सत्समागम अने १. जुओ 'नरनारायणानंदमहाकाव्य'ना सर्ग २, ८, १०ना अंत्य श्लोको तथा 'चतुर्विंशतिप्रबंध' अने 'उपदेशतरंगिणी'मां संग्रहायेला 'धर्माभ्युदयकाव्य'ना श्लोको. २. संङ्घपतिचरितमेतत् , कृतिनः कर्णावतंसतां नय। श्रीवस्तुपालधर्माभ्युदयमहो महितमाहात्म्यम् ॥ धर्माभ्युदयकाव्य सर्ग १, श्लो. १७.
SR No.009540
Book TitleDharmabhyudaya Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanbalashreeji
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2010
Total Pages515
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size2 MB
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