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________________ भिक्षापात्र उपर रही उघाडे पगे अने उधाडे माथे जगत् उपर विचरनारा जगत्ना जीवमात्रनु कल्याण इच्छनारा आपणा सर्व मुनिओ धर्मप्रभावक महात्माओ छे. तेमनी वेष, आचार, उपदेश अने आकृतिए केइ मानवगणोने तार्या छे. अने केइने बोधिवीज उत्पन्न कर्या छ पण जेना कार्यनी वर्षोंसुधी स्मृत्ति रहे अने जेने याद करी हजारो मानवोनो निस्तार थाय ते पुरुषो जैनदर्शनना विशिष्टप्रभावक महात्माओ छे. पू. आचार्य सिद्धसेनदिवाकरसरि एवा विशिष्ट धर्मप्रभावक महात्मा छे के जेमने अने तेमना सम्मति मंथने तेमना पछीना थयेला ग्रंथकारोमांथी भाग्ये ज कोइए तेमने याद कर्या न होय. काव्य, व्याकरण, न्याय, धर्मोपदेश अने बीजा अनेकविध सेंकडो ग्रंथोनु सर्जन आपणा मुनिमहात्माओने हाथे सर्जायु छे. आ सर्जननो उपकार अने सौरभ केवळ जैन शासनमां नहि पण जैन जैनेतर बधे विस्तरी छे. छतां नवी दृष्टि अने विषयने आरपार पारखी ग्रंथ निर्माण करनार महात्माओमां पू. सिद्धसेनदिबाकरसूरि, पू. आ. हरिभद्रसूरि, कलिकालसर्वज्ञ हेमचंद्रसरि अने प. उ.यशोविजयजी महाराज विगेरे मूख्य छे. पू. सिद्धसेनदिवाकरसूरि महाराजे जैनदर्शनना स्थावाद-अनेकांतवादने जगत्ना चोकमां झळहळती रीते अने अकाटघरीते रजु करी एक वीजा तत्त्ववादोनो समन्वय करी सोने जणाव्यु के अनेकांतवादना आसरा विना व्यवहार के तत्त्ववाद कोई स्थिर थशे नहि. तपत्याग अने ध्यान क्रियाना उत्तरोत्तर विकासना पगथाररूप गुणस्थाकोनुं स्वरूप जैनग्रंथोमां ठेर ठेर हतु छतां ते स्वरूपमां जगत्भरना आध्यात्मिकविकासने संग्रही दृष्टिओना स्वरूपने रजु करवामां पू. आ. हरिभद्रसूरि प्रथम पंक्तिए छे. काव्य व्याकरण साहित्य विगेरे सर्व शास्त्रोन महाकाय निर्माण करनार कलिकाल सर्वज्ञ हेमचंद्रसरिए एबु ग्रंथ निर्माण कयु के जैनदर्शनमां तो तेमना ग्रंथो प्रभावक रह्या पण जेनेतरोए पण हमेशने माटे तेमना वधा ग्रंथोने तेमना पोताना ग्रंथोमा प्रमाणित कर्या अने तेमनी साक्षिओ धरी कलिकाल सर्वज्ञरुपे संबोध्या. तत्त्वभरपुर कठीन न्यायग्रंथोथी मांडी रास स्तवन अने सज्झाय सुधीनुं अनेकविध साहित्य निर्माण करनार उ, यशोविजयजीए तमाम तात्विक मतभेदोनी संकलना करी अने नव्यन्यायना अनेक प्रथोर्नु निर्माण करी जैनेतरविद्वान समाजने पण बताव्यु के जैनमुनिमहात्माओ साहित्यना सर्वक्षेत्रमा सर्वकाळे सदा मोखरेज रया छे. - आ. पू. आचार्य हरिभद्रसूरि-कलिकालसर्वज्ञ हेमचंद्रसूरि अने उ. यशोविजयजीमहाराज जे जनशासनना महाप्रभावक पुरुषो छे तेमणे पण तेमना साहित्यसर्जनमा पू. सिद्धसेनदिवाकरपरिनो महान उपकार गण्यो छे. ___ अनेकांत जयपताका शास्त्रवार्तासमुच्चय, पइदर्शनसमुच्चय, पंचवस्तु अने धर्मसंग्रहणी विगेरे ग्रंथोमा १४४४ ग्रंथ प्रणेता पू. आ. हरिभद्रसूरिजीए पू, सिद्धसेनदिवाकरसरिना संम्मतितकं भ्यायावतार अने पत्रीसीओमांनी अनेक वस्तुओने साक्षिपाठरुपे संग्रही छे. पंचवस्तुमा तेमणे "Aho Shrutgyanam"
SR No.009536
Book TitleSammatitarka Maharnavatarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydarshansuri
PublisherJainmarg Prabhavaka Sabha Madras
Publication Year
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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