SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६ २१ द्वात्रिंशिकाओ आजे उपलब्ध छे. आ द्वात्रिंशिकाओमां अनुष्टुभ, उपजाति, वसंततिलका, पृथ्वी, शिखरिणी, मंदाक्रान्ता, पुष्पिताग्रा, वंशस्थ, आर्या अने शालिनी बिगेरे विविध छंदोमां रचायेली छे. आ द्वात्रिंशिकाओमां वैदिक, बौद्ध अने जैनदर्शनना दार्शनिक विचारों निरुपण छे. आ संमतिप्रकरण उपर 'अनुमल्लवादिनं तार्किकाः' कही कळिकाळ सर्वज्ञ हेमचंद्रसूरिए जेने स्तन्या छे ते मल्लवादिरिए आ ग्रंथ उपर टीका रची हती तेम १४४४ ग्रंथप्रणेता हरिभद्रवरि अने उपाध्याय यशोविजयजीनी अष्टसहस्रीना लखाणथी जणाय छे. 'उक्तं च वादिमुख्येन श्रीमल्लवादिना सम्मतौ' (हरिभद्रवरिः) 'इहार्थे कोटिशः भंगा निर्दिष्टा मल्लवादिना मूलसंमतिटीकायामिदं दिङमात्रदर्शनम् (अष्टसहस्री उ. यशोविजय) जैनदर्शननी दिगंत प्रभावना करनार आ महापुरुषनो एके सांगोपांग ग्रंथ आजे मळतो नथी हाल द्वादशार नयचक्र तेमनो बनावेलो ग्रंथ मुद्रित थाय छे ते मुद्रित थतां तेमना जीवन उपर सारो प्रकाश मळशे. मल्लवादिए बौद्ध उपर विजय मेळव्यो हतो अने तेनो समय वि. सं. ४१४ नो मनाय छे. संमति प्रकरण उपर तेमनी लखेली टीका केटला प्रमाण हती अने केवी हती तेनुं विशेष समर्थन मळतुं नथी पण वृहट्टीप्पणकारे ते टीका ७०० श्लोक प्रमाण हती तेनुं उल्लेखित कर्यु छे. सन्मति प्रकरण उपर हाल उपलब्ध थाय छे ते अभयदेवसूरिनी २५००० श्लोक प्रमाण तत्वबोधिनी वृत्ति छे. १६७ गाथाना सन्मति प्रकरणग्रंथने महाकाय महान ग्रंथ बनाववामां अने भारतीय तमाम दर्शनशास्त्रनी संपूर्ण गवेषणा करनार ग्रंथ तरीकेनुं बहुमान संमतितर्कने मळयुं छे जे अभयदेवसूरिनी वृत्तिने लइने छै, सिद्धसेन दिवाकरसरिए अनेकांतदृष्टिनो परामर्श अने इतरदर्शनोनी अनेकांतदृष्टिमां व्यवस्थित संकलना करी छे, पण आ टीकाकारे तो पोताना काळसुधीना भारतीयदर्शनोना समग्र वादोनुं निरुपण करी जैनदृष्टि अनेकांतदृष्टिए तेने विवर्या छे. आ अभयदेवरि विक्रमनी अगिआरमी शताब्दिना पूर्वार्धमां थया छे. केमके उत्तराध्ययननी पाइ टीकाकर्ता वादिवेताल शांतिसूरिए प्रमाणशास्त्रना गुरु तरीके अभयदेवसूरिने जगाच्या छे. आ शांतिरिनो स्वर्गवास वि. सं. १०९६ मां थयानुं प्रभावकचरित्रकार जगावे छे. तेथी वि. सं. १०५० लगभग अभयदेवसूरि थया तेम चोकस थाय छे. "Aho Shrutgyanam"
SR No.009536
Book TitleSammatitarka Maharnavatarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydarshansuri
PublisherJainmarg Prabhavaka Sabha Madras
Publication Year
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy