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________________ टद्वितीयम् ।] भाषाटीकासमेतः । कूटोऽस्त्री राशिपूरदम्भमायाऽनृतेष्वपि । तुच्छेऽद्रिशृङ्गेसीराङ्गे यन्त्रायोघननिश्चले ॥ ८ ॥ कृष्टिबुधे ना कषेऽस्त्री कोटिः संङ्ख्यान्तराग्रयोः । अत्युत्कर्षप्रकर्षाधिकार्मुकाग्रेषु च स्त्रियाम् ॥ ९ ॥ क्रुष्टं तु रोदने रावे कृष्टिः स्यात्कृशसेवयोः । खटोऽन्धकूपे टके च खटः श्लेप्मचपेटयोः ॥ १०॥ खाटिः स्त्रियां शवरथे खाटिरेकग्रहे किणे । खेटस्तु निन्दिते ग्रामभेदेऽपि वसुनन्दके ॥ ११ ॥ गृष्टिरेकप्रसवगोवराहक्रान्तयोः स्त्रियाम् । विष्णुकान्तौषधौ घृष्टिोण्टा बदरपूगयोः ॥ १२ ॥ चटुश्वाटौ पिचिण्डे च तिनामासने चटुः । चाटश्चाटे च धूर्ते च मूलमांसिकयोर्जटा ॥ १३ ॥ कृट-राशि (डेर ), पुरदरवाजा, दंभ टन ( जोकस्सी आदिके डांडेके ( पाखंड ), माया, असत्य, तुच्छ, रगडनेसे हाथमें होजाताहै) (स्त्री०) पर्वतशिखर, हलका एक अंग,यंत्र, खेट-निंदित, ग्रामभेद, वसुभेद, लोहमुद्गर, निश्चल, (पुं० )॥ ८॥ विष्णुखड्ग ( पुं० )॥ ११ ॥ कृष्टि-पंडित, (पुं, ) आकर्ष (खें. गृष्टि-एकबार व्याईहुई गौ, वराह चना) (पुं० न०) क्रान्ता नाम औषधि, ( स्त्री०) कोटि-कोटि-संख्या, अग्र भाग, अति घृष्टि-विष्णुकान्ता औषधि, (स्त्री०) उत्कर्ष, प्रकर्ष (उन्नति ), कोण, घोण्टा-बेर-झाडीफल, सुपारी, धनुषका अग्रभाग (स्त्री० ) ॥९॥ (स्त्री०)॥ १२ ॥ क्रुष्ट-रोना, शब्द, (न.) | चटु-प्रियवाक्य, पेट, (उदर), अतिकृष्टि-दुबला, सेवा; ( स्त्री०) योंका आसन, (पुं० ) खट-अन्धाकूवा, पत्थरफोडनेकी चाट-चाट (विश्वासदेकर धनठगने___टांकी, कफ, चपेटा (थप्पड ) वाला ), धूर्त, (पुं०) लगाना, (पुं०)॥ १० ॥ जटा-मूल (जड़), जटामांसी, (स्त्री०) खाटि-मुर्देकी तखती, एकग्रह, आं. ॥१३॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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