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________________ सतृतीयम् । ] भाषाटीकासमेतः । वासस्तु वसने ख्यातमोष्ठे दशनपूर्वकम् । वाहसोऽजगरे वारिनिर्माणे सुनिषण्णके ॥ ३७ ॥ विद्वान्धीरात्मवित्प्राज्ञे विलासो हावलीलयोः। वीतंसो बन्धनोपाये मृगाणां पक्षिणामपि ॥ ३८ ॥ तद्विश्वासाय वस्त्रे च वीतंसमपि न द्वयोः । बीभत्सो नाऽर्जुने हिंस्र विकृते सघृणे त्रिषु ॥ ३९ ॥ पितामहे बुधे वेधा वेधा दामोदरेऽपि च । शिरस्तु मस्तके सेनाप्रभागेऽत्र्यप्रधानयोः ॥ ४० ॥ श्रेयस्तु मङ्गले धर्मे श्रेयाशस्तेऽभिधेयवत् । श्रेयसी करिपिप्पल्यामभयारास्नयोरपि ॥ ४१ ॥ श्रीवासो वृकधूपेऽपि श्रीवासो विष्णुपद्मयोः । स्रोतोऽम्बुलेशे कर्णे च स्रोतो देहशिरास्वपि ॥ ४२ ॥ वासस्-वस्त्र, (न०) । वाला, विकारको प्राप्त हुवा, ग्लानि दशनवासस्-होंठ ( न० ) करनेवाला, (त्रि.)॥ ३९ ॥ वाहस-अजगर-सर्प, जलका निकस- वेधस्-ब्रह्मा, पंडित, श्रीकृष्ण (पुं०) ना, अच्छीतरह स्थित हुवा (पुं०) शिरस्-मस्तक, सेनाका अग्रभाग ( न० ) आगे होनेवाला, प्रधान विद्धस्-धैर्यवान, आत्मवेत्ता, पंडित, (त्रि.) ॥ ४० ॥ (पुं०) श्रेयस्-मंगल, धर्म (न) श्रेयस्-श्रेष्ठ (त्रि०) विलास-हाव, लीला (पुं०) श्रेयसी-गजपीपल, हरड, रायसन वीतंस-मृग और पक्षियोंका बंधन का बंधन (स्त्री०)॥४१॥ __ का उपाय, (पुं० ) ॥ ३८॥ श्रीवास-सरल वृक्षका गोंद, विष्णु, वीतंस-मृग और पक्षियों के विश्वासके- कमल ( पुं० ) लिये वस्त्र ( डरावा) (न०) स्रोतस-जलका लेश ( थोडा जल), बीभत्स-अर्जुन (पुं० ) हिंसाकरने- कान, शरीरकी नाडी ( न०) ४२ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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