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________________ षद्वितीयम् । ] भाघाटीकासमेतः । कर्पः पुंसि करीषाग्नौ कः कुल्याभिधायिनी । कोषोऽस्त्री कुमले दिव्ये पेश्यां शब्दादिसद्महे ॥ ३ ॥ अर्थोघे जातिकोशे च पात्रखगपिधानयोः । पनसादिफलस्यापि कोषः स्यान्मध्यवर्तिनि ॥ ४ ॥ घोषा तु शतपुष्पायां घोषः कांस्येम्बुदध्वनौ । घोषः स्याद्घोषकाभीरनिखनाभीरपल्लिषु ॥ ५ ॥ झषा नागबलायां स्याज्झषो वैसारिणि स्मृतः । पिपासालिक्षयोस्तर्षस्तुषो धान्यत्वगक्षयोः ॥ ६ ॥ तृट् तृषा च पिपासायां लिप्सायां च स्त्रियामुभे । त्विट् कान्तौ रुचि भारत्या व्यवसायजिगीषयोः ॥ ७ ॥ दोषस्तु दूषणे पापे दोषा रात्रौ भुजेऽपि च । पौषो मासविशेषे स्यात्पौषमुद्धवयुद्धयोः ॥ ८ ॥ कर्ष-करिश (अरना) की अग्नि, । झषा-गँगेरन-औषधि, ( स्त्री० } कर्दी-अस्थि (स्त्री० ) झष-मत्स्य आदि (पुं० ) कोष(श)-फूलकली, दिव्य, थेली, तर्ष-प्यास, बांछा ( स्त्री० ) शब्द आदिका संग्रह (पुं०) ॥३॥ तुष-धान्यका तुष, बहेड़ा-औषधि द्रव्यका समूह, जातिकोष ( एक (पु० ) ॥६॥ जातिका संग्रह ), पात्र, खड्गका तृट् (प)-तृषा-प्यास, बांछा, (स्त्री०) कोश ( म्यान), चमेलीका कोश, पनस आदिके फलका मध्यवर्ती त्विट्()-कान्ति, प्रभा, सरखती, उद्यम ( वीर्यातिशय ), जीतनेकी भाग (पुं० ) ॥ ४ ॥ इच्छा ( स्त्री० ) ॥ ७ ॥ घोषा-सौंफ ( स्त्री०) घोष-काँसी-धातु, मेघकी ध्वनि दोष-दूषण, पाप, (पुं० ) ( शब्द ),घोषक (गोपाल ) अ- दोषा-रात्रि, भुजा (बाहु), (स्त्री) हीरजाति, शब्द, अहीरोंका ग्राम, पौष-पौष-मास, (पुं०) (पुं०)॥५॥ पौष-उत्सव, युद्ध, (न०)॥ ८॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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