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________________ वतृतीयम् । ] भाषाटीकासमेतः । कितवः पुंसि धुस्तूरे मत्तवञ्चकयोरपि । पुन्नागे माधवे पुंसि केशाढ्ये त्रिषु केशवः ॥ ३३ ॥ कैतवं तु छले द्यूते कैरवः शत्रुधूर्त्तयोः । कैरवं कुमुदे क्लीवं चन्द्रिकायां तु कैरवी ॥ ३४ ॥ कौट्टवी चण्डिकायां स्यात्तथा नमस्त्रियामपि । गाण्डीवगाण्डिवौ न स्त्री कार्मुकेऽर्जुनकार्मुके ॥ ३५ ॥ गालवस्तु मुनौ लोभे ताण्डवं तृणनृत्ययोः । स्वर्गेऽन्तरिक्षे त्रिदिवस्त्रिदिवा सरिदन्तरे ॥ ३६ ॥ दीदिविस्त्रिदशाचार्ये भवेदन्नेऽपि दीदिविः । द्विजिह्वः पन्नगे पुंसि सूचके त्वभिधेयवत् ॥ ३७ ॥ निष्पावः शूर्पपवने पचने च कडङ्गरे । निष्पावो निर्विकल्पेऽपि शिम्बिकाराजमाषयोः ॥ ३८ ॥ अपलापेऽपि निकृतावविश्वासेऽपि निह्नवः । पञ्चत्वं स्यात्तु पञ्चानां भावेऽपि निधनेऽपि च ॥ ३९ ॥ तांडव - तृण, नृत्य, ( न० >> त्रिदिव-स्वर्ग, आकाश, ( पुं० ) त्रिदिवा - नदी (स्त्री० ) ॥ ३६ ॥ दीदिवि - बृहस्पति, अन्न, (पुं० ) द्विजिह्न - सर्प, (पुं०) चुगलखोर, ( त्रि० ) ॥ ३७ ॥ कितव-धतूरा, उन्मत्त, ठग, (पुं०) | केशव - पुन्नाग-वृक्ष, विष्णु, (पुं० ) बहुतकेशोंवाला, (त्रि ० ) ॥ ३३ ॥ कैतव - छल, जूवा, ( न० ) कैरव - शत्रु, धूर्त, (पुं० ) कैरव ३६५ कमोदनी, ( न० ) कैरवी - चांदकी चांदनी, ( स्त्री० ) निष्पाव - छाजका वायु, वायु, भूसा, ( पुं० ) निर्विकल्प, ( त्रि० ) फली, उड़द, (पुं० ) ॥ ३८ ॥ निह्नव-वचनको गोप्यकरना, शठ, ता, अविश्वास, (पुं० ) पंचत्व- पाँचोंका भाव, मृत्यु, (पुं०) ॥ ३९ ॥ ॥ ३४ ॥ कौट्टवी - चंडिका, नग्न स्त्री, ( स्त्री० ) गांडीव - गांडिव - धनुष्, अर्जुनका धनुष्, ( पुं० न० ) ॥ ३५ ॥ गालव- मुनि ( गालव ), लोध-वृक्ष, ( पुं० ) "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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