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________________ ३ लतृतीयम् । भाषाटीकासमेतः । ३३९ स्थूलस्तु वाच्यवत्पीने कूटनिष्प्रज्ञयोरपि । हाला मद्ये नृपे हालो हेलाऽवज्ञाविलासयोः ॥ ५७ ॥ ___ लतृतीयम् । स्यादङ्गली तु मातङ्गकर्णिकाकरशाखयोः अचलः पर्वते कीले निश्चलेऽप्यचला भुवि ॥ ५८ ॥ अञ्जलिः पुंसि कुडवे करसंपुटकेऽञ्जलिः । अनलो वसुभेदेऽग्नावनिलो वसुवातयोः ।। ५९ ।। अवेलः पूगरागेऽपि रवतोयचशालयोः । अपलापेऽप्यवेलं स्यादवेला पूगचूर्णयोः ॥ ६० ॥ अमला कमलायां स्यादमलं विशदेऽभ्रके। स्यादरालः पुमान्सर्जे मत्तेभे कुटिलेऽन्यवत् ।। ६१ ॥ स्थूल-मोटा (त्रि०) ढेर, बुद्धिहीन, अंजलि-कुडव (१६ तोला), (पुं०) | हाथों का संपुट ( अंजलि) (पु.) हाला-मदिरा, (स्त्री०) अनल-वसुभेद, अग्नि, (पुं० ) हाल-एकराजा (पुं० ) अनिल-वसु, वायु (पुं० )॥ ५९ ॥ हेला-तिरस्कार, स्त्रियोंका विलास अवेल-सुपारीका रंग,..... ( पुं०) (स्त्री० ) ॥ ५७ ॥ अवेल-गोप्य (न०) लतृतीय । अवेला-सुपारी, चूना ( स्त्री० ) अंगुली-हस्तीकी कर्णिका ( सूंड ), का (सूड), अमला-लक्ष्मी, ( स्त्री० ) हाथकी शाखा ( अंगुली ) (स्त्री०) अमल निर्मल ( त्रि. ) भोडल अचल-पर्वत, कीला, निश्चल ( नहीं (न०) चलनेवाला) (पुं०) अराल-राल-वृक्ष, उन्मत्त हस्ती अचला-पृथ्वी (स्त्री०) ॥ ५८ ॥ (पुं० ) कुटिल (त्रि.) ॥६१॥. "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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