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________________ रचतुर्थम् । ] भाषाटीकासमेतः।। बलभद्रा कुमायौं स्यात्रायमाणे बले पुमान् । वार्वटीरस्त्रपौ चूतास्थ्यङ्कुरे गणिकासुते ॥ २९० ॥ उकणे वारकीरः स्यान्नीराजितहयेऽपि च । वीरभद्रोऽश्वमेधाश्वे महावीरेऽपि वीरणे ॥ २९१ ।। क्लीबं वीरतरं वीरश्रेष्ठे वीरणगुन्द्रयोः । मणिच्छिद्रा तु मेदायामृषभाख्यौषधावपि ॥ २९२ ॥ महावीरस्तु गरुडे शूरे कण्ठीरवे पवौ । महावीरः पिके चाश्वमखाग्नौ च जराटके ।। २९३ ॥ महामात्रो हस्तिपके समूहामात्ययोरपि । रथकारस्तु माहिष्यात्करणीजेऽपि तक्षणि ॥ २९४ ।। रागसूत्रं तुलासूत्रे पट्टसूत्रेऽपि न द्वयोः । वसन्तकङ्कणाभिख्यशङ्ख नोगण्डिपट्टके ॥ २९५ ।। बलभद्रा-धीकुमार,त्रायमान,(स्त्री०) मणिच्छिद्रा-मेदा-औषधि, ऋषबलभद्र-बलदेव (पुं०)॥ २९० ॥ भाख्य औषधि, (स्त्री.) ॥२९३॥ बार्बटीर-सीसा, या राँगा, आमकी | महावीर-गरुड, शूर, सिंह, वज्र, गुठली और अंकुर, वेश्याका पुत्र, कोयल-पक्षी, अश्वमेधयज्ञका अग्नि, (पुं०) ॥ २९१ ॥ (पुं०) ॥ २९३ ॥ बारकीर--...आरती कियाहुवा अश्व, | महामात्र-फीलवान, समूह, मंत्री, (पुं०) (पुं०) (रथकार-वैश्याके क्षत्रियसे उपजे वीरभद्र-अश्वमेध यज्ञका अश्व, महा | अश्व, महा- पुरुषसे शूद्रीके वैश्यसे उपजी स्त्रीमें वीर, (पुं०) बीरनमूल (न०)। उत्पन्नहुवा, (बढई) (पुं०) ॥२९४॥ ॥ २९२ ॥ | रागसूत्र-तराजूका सूत्र, पाटका सूत्र, वीरतर-वीरश्रेष्ठ, वीरनमूल, शर, (न०) वसंतकंकण नाम शंख, (पुं०) । हस्तीका पट्टा, (पुं०)॥ २९५ ॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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