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________________ ३०२ विश्वलोचनकोशः [ रान्तवर्गेकैवर्तीमुस्तके द्वारि पुरद्वारे तु गोपुरम् । घर्घरस्तु चलद्वारिशब्दे घूके नदान्तरे ।। १५१ ।। चमरं चामरे वलयां चमरी मञ्जरौ मृगे। चातुरश्चातुरकवचक्रगण्डौ नियन्तरि ॥ १५२ ॥ दृग्गोचरे चाटुकारे चिकुरश्चञ्चले कचे । गृहे बभ्रौ भुजङ्गे च शैले पक्षिद्रुमान्तरे ॥ १५३ ॥ छित्वरं छेदनद्रव्ये छित्वरो धूर्तविद्विषोः । छिदिरस्तु बृहद्भानुखगरज्जुपरश्वधे ॥ १५४ ॥ जठरं कठिने वृद्धे त्रिषु स्यादुदरेऽस्त्रियाम् । जम्बीरः पुंसि जम्बीरपादपप्रस्थपुष्पयोः ॥ १५५ ॥ जर्जरं वाच्यवज्जीर्णे जर्जरं वासवध्वजे । जलेन्द्रो वरुणे सिन्धौ जलेन्द्रो जम्भले मतः ॥ १५६ ॥ गोपुर-केवटीमोथा, दरवाजा, पुरदर- छित्वर-छेदनद्रव्य ( न०) वाजा, ( न.) छित्वर-धूर्त, शत्रु, (पुं० ) घर्घर-चलताहुवा जलका शब्द, उल्लू--पक्षी, नदभेद ( घाघर नदी) छिदिर-अग्नि, खग, रस्सी, फरसा (पुं० ) ॥ १५१ ॥ ! (पुं० ) ॥ १५४ ॥ चमर-चवँर, बेल ( न०) जठर-कठिन, वृद्ध ( त्रि०) चमरी-मंजरी, मृगभेद ( स्त्री०) जठर-उदर (पेट) (पुं० न०) चातुर-चातुरक-चक्रगंड (कपोलपर )चक्रवाला,प्रेरणेवाला,॥१५२॥ जम्बीर-जंभीरी नींबूवृक्ष, मरुवा, ॥१५५ ॥ नेत्रगोचर, चाटुकार ( खुशामद ) (पुं०) जर्जर-वृद्ध ( त्रि०) चिकुर-चंचल, केश, घर, नौला, जर्जर-इंद्रध्वज, ( न०) सर्प, पर्वत, पक्षिभेद, वृक्षभेद, जलेन्द्र-वरुण, समुद्र, जंभीरी नींबू (पुं० ) ॥ १५३ ॥ . (पुं० )॥ १५६ ॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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