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________________ भतृतीयम् ।] भाषाटीकासमेतः। २३९ ऋषभी तु नराकारनारीविधवयोषितोः । शूकशिंब्यां शिरालायां श्रेष्ठे स्यादुत्तरस्थितः ॥ १३ ॥ ककुभोऽर्जुनवृक्षेऽपि रागभेदे प्रसेवके । ककुबू दिक्शोभयोः शास्त्रे कम्बले चम्पकसजि ॥ १४ ॥ करभो मणिबन्धादिकनिष्ठान्ते क्रमेलके । अष्टापदेऽपि करभः शरभे च मृगान्तरे ॥ १५ ॥ कुसुम्भं हेमनि महारजने ना कमण्डलौ । गईभी रासभे गन्धभेदे क्लीबं तु कैरवे ॥१६॥ गईभी खल्परुग्जन्तुभेदयोरथ पुंस्ययम् । दुन्दुभिदैत्यभेोः स्त्री त्वक्षबिन्दुत्रिके द्वये ॥ १७ ॥ दुष्प्रापे वल्लभे कच्छरोगिणि त्रिषु वल्लभः । निकुम्भः कुम्भकर्णस्य पुत्रे दन्त्यामपि स्मृतः ॥ १८ ॥ ऋषभी-नराकार ( दाढीमूछवाली) चौपड़ या सुवर्ण, शरभ (साबर), स्त्री, विधवा स्त्री, कौंछ, कमरख मृगभेद (पुं० )॥ १५ ॥ (स्त्री) कुसुंभ-सुवर्ण, कमंडलु (जलपात्र) ऋषभ-शब्द किसीके आगे जोड़ा- (पुं० ) हुवा श्रेष्ठवाचक है (पुं० ) गर्दभ-गधा, गंधभेद, (पुं० ) श्वेत ___ कमल (न०)॥ १६ ॥ ककुभ-अर्जुन (कोह) वृक्ष, राग- गदे भी-क्षुद्ररोग, जन्तुभेद (स्त्री० ) भेद, बीणाकी तूंबी, (पुं०) | दुन्दुभि-एक दैत्य, भेरी (पुं०) चौपड खेलनेके तीन पासे (पुं० स्त्री.) ककुभ-दिशा-पूर्व आदि, शोभा, ॥१७॥ शास्त्र, कंबल, चंपाकी माला, वलभ-जो दुःखसे प्राप्त हो वह, प्रिय, (स्त्री० ) ॥ १४ ॥ कच्छरोगवाला, (त्रि.) करभ-मणिबंध ( पहुँचा )से लेकर निकुंभ-कुंभकर्णका पुत्र, जमालगो कनिष्ठाके अंततक भाग, ऊँट, टाकी जड, (पुं० ) ॥ १८ ॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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