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________________ कतृतीयम् । ] भाषा टीकासमेतः । वंशे ना कार्मुकं चापे कर्मशक्ते तु वाच्यवत् । कालिका चण्डिकायां स्याद्योगिनीभेदकाष्ण्ययोः ॥ ५५ ॥ पश्चाद्दातव्यमूल्ये च पटोलकलतान्तरे । रोमाली धूमरीमांसीकाकीवृश्चिकपत्रके ॥ ५६ ॥ घनाव लावलं धूमप्रभेदे नवनीरदे । किम्पाकस्तु महाकालफले मूर्खे च कीचकः ॥ ५७ ॥ दैत्येवातध्वनिध्वंसे शुष्कवंशे द्रुमान्तरे । कीटकः कृमिजातौ स्यान्निष्ठुरेऽपि च कीटकः ॥ ५८ ॥ कुलकस्तु कुलश्रेष्ठे वल्मीके काकतिन्दुके । कुलकं श्लोकसम्बद्धगुच्छकेऽपि पटोलके ॥ ५९ ॥ कुलिको नागभेदे स्यात्कुलश्रेष्ठे द्रुमान्तरे । कुशिकस्तु मुन तैलशेषे सर्जे कलिद्रुमे ॥ ६० ॥ ११ कार्मुक-बाँसका वृक्ष, धनुष (पुं० ) | कीचक - दैत्यविशेष, वायुसे उखाकर्म में समर्थ, (त्रि ० ) डाहुवा और बाजताहुवा सूखा बांस, वृक्षविशेष, (पुं० ) । कालिका - चंडिका देवी, योगिनी विशेष, कालापना ॥ ५५ ॥ पीछे दियाजानेवाला वस्तुका मूल्य, परवलकी बेल, रोमावली, एक, किन्नरी, जटामांसी- औषधी, कागन पक्षी, बीछूका डंक, ॥ ५६ ॥ मेघावली, धूमविशेष, नवीनमेघ, कुलिक-नागविशेष, कुलमें श्रेष्ठ, ( स्त्री० ), वृक्षभेद ( तालमखाना ) (पुं) किम्पाक-बडेकालका फल, मूर्ख, । कुशिक-मुनि, तेलकी बँची खलीआदि शालवृक्ष, बहेडावृक्ष, (पुं० ) ॥ ६० ॥ (पुं० ) ॥ ५७ ॥ कीटक - कृमिजाति, कठोर, (पुं०) ५८ कुलक- कुलमें श्रेष्ठ पुरुष, बाँबी, मकर तेंदुवानामक वृक्षविशेष, (पुं०) श्लोकसंबद्धगुच्छा, परवल, ( न० ') ॥ ५९ ॥ " Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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