SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 219
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नतृतीयम् । ] भाषाटीकासमेतः । वचनु विप्रे वशी सुगतशकयोः । वपनं मुण्डने वापे वमनं छर्दनेऽर्द्दने ॥ १२० ॥ आहतावप्यथ क्लीवं वर्जनं त्यागहिंसयोः । वर्त्तनं जीवने जीव्ये तूलनाले च वर्त्तनम् ॥ १२१ ॥ वर्त्तनी तर्कपिण्डेऽपि मलिने पथि वर्त्तनी । वर्णी चित्रकरे ब्रह्मचारिलेखकयोरपि ॥ १२२ ॥ आकारे शोभने वर्ष्म वर्ष्म देहप्रमाणयोः । वर्त्म नेत्रच्छदे मार्गे वाग्मी वाचस्पतौ पटौ ॥ १२३ ॥ वाजी वाहे खगे बाणे खर्वेषु त्रिषु वामनः । वामनो विष्णुभेदे स्यादधे याम्यादिदिग्गजे ॥ १२४ ॥ विक्किन्नस्तिमिते जीर्णे जराजीर्णेपि वाच्यवत् । विच्छिन्नस्तु समालब्धे विभक्ते कुटिलेऽन्यवत् ॥ १२५ ॥ वचक्कु - बहुतबोलनेवाला, ( त्रि० ) | वर्ष्म - आकार, सुंदर, शरीर, प्रमाण, ब्राह्मण, (पुं० ) ( न० ) वशिन- बुद्धदेव, इंद्र, (पुं० ) बोना-बीजआदिका वपन -मुण्डन, ( न० ) वमन - छर्दन, अर्दन (पीडन ) ॥ १२० ॥ जान से मारना, ( न० ) वर्जन - दान, हिंसा, ( न० ) वर्त्तन-जीना, आजीविका, रूईकी - नाली, ( न० ) ॥ १२१ ॥ २०५ वर्त्मन् - पलक, मार्ग, ( न० ) वाग्मिन् - बृहस्पति, चतुर, (पुं० ) ॥ १२३ ॥ वाजिन-अश्व, पक्षी, बाण, (पुं० ) वामन - बौना, (त्रि ० ) विष्णु अवतार ( वामन ), अश्वभेद, दक्षिण दिशाका हस्ती, (पुं० ) ॥ १२४ ॥ विक्लिन्न-गलाहुवा, जीर्ण, (पुं० ) वृद्धअवस्था से जीर्ण (वृद्ध) (त्रि०) वर्त्तनी - कुकड़ी, मलिन, मार्ग, (स्त्री० ) | विच्छिन्न-अच्छे प्रकार से लब्ध, विवर्णिन्- चित्रकार, ब्रह्मचारी, लेखक भाग किया हुवा, कुटिल, ( त्रि० ) ( पुं० ) ॥ १२२ ॥ ॥ १२५ ॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy