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________________ द्वितीयम् ।] भाषाटीकासमेतः। १२९ त्रिषु वृत्तं तु चरिते वृत्तं छन्दसि वर्तते । वृतिर्विवरणे वाटे वेष्टिते वरणे वृतम् ॥ ५७ ॥ वृन्तं प्रसवबन्धेऽपि कुचाग्रे घटधारयोः । शस्तं क्षेमे प्रशस्ते च शातः शकुनिशातयोः ।। ५८ ॥ शातं शर्मणि शान्तस्तु रसे दान्तेऽपि मुक्तके । शान्तिः शमेऽपि कल्याणे शास्ता शासकबुद्धयोः ॥ ५९ ॥ शितः कृष्णे सिते भूर्जे शितं शकुनिशान्तयोः । वानीरबहुवारे च शीतः शीतं तु चन्दने ॥ ६०॥ हिमसम्भूतजाड्येऽपि शीतलालसयोस्त्रिषु । शुक्तिः शङ्खनखे शके मुक्तास्फोटेऽपि कम्बुनि ॥ ६१ ।। .--..- .. --...... .. ........ - वृत्त-चरित, छंद, ( न० ) शान्ति-मनका जीतना, कल्याण, वृति-विवरण (व्याख्या), वाट (बाड़)। (स्त्री० ) (स्त्री०) शास्ता-शिक्षाकरनेवाला, बुद्ध-देव वत-लपेटाहवा, आच्छादित किया- (पु० ) ॥ ५९ ॥ __ हुवा, (न० ) ॥ ५७ ॥ शित-काला, सफेद, (नि० ) भोवृन्त-पुष्पआदिका नाकू, कुचाका ___ जपत्र (पुं०) अग्रभाग, घटकी धारा ( न०) | शित-पक्षी, दुर्बल, (पुं०) शस्त-कुशल, ( न० ) श्रेष्ठ, (त्रि.) शात-बत, बहुतबार, (पु.) शीत-चंदन, (न०) ॥ ६ ॥ शात-पक्षी, शान्त-मनुष्य, (पुं० ) ___बरफ ठंढा (न०) आलस्यवाला, ॥५८॥ (त्रि.) शात-कल्याण, (न०) शुक्ति-सँखला, शंख, (पुं० ) शान्त-शान्त-रस, इंद्रियोंका जीतने- कपालकी हड़ी, सीपी, शंख, वाला, मुक्त, (पुं० ) । (स्त्री०)॥६१ ॥ "Aho Shrutgyanam
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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