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________________ मेधमहोदये ॐ ह्रीं नमो मलयू मेघकुमाराणां ॐ ह्रीं श्री नमोक्षज्यू मेघकुमारिकाणां वृष्टिं कुरु कुरु संवौषट् स्वाहाः । ॐ ह्रीं मेघकुमार आगच्छ आगच्छ स्वाहाः । एवं नामानि सर्वेषां जप्योनि वृष्टिहेतवे । जपात् सन्तर्पिताः सर्वे देवा वृष्टिविधायिनः ॥२३॥ ये ग्रामदेवता हिंस्रा नागा भूताश्च गुह्यकाः ।। ये चान्ये भगवत्याद्या-स्तान् नेवाशातयेद् बुधः ॥ २४ ॥ जिनार्चान्ते क्षेत्रदेवी कायोत्सर्गाऽऽविधानतः । सम्यगदृशामपि स्मार्या एवं भुवनदेवता ।। २५ ।। अथ देवाधिकारे देवयंत्रोदारः ----- प्रथमं नवकोष्टकयन्त्रं स्वस्तिकाकारं कृत्वा तत्र मध्यकोष्टके वागवीजं ब्रह्मरूपं '' विन्यस्य परितो 'नमो अरिहंतागां' इति लेख्यम् । ततो दक्षिणकोष्टके, मौ' इति शिवशक्तिबीजं महेश्वररूपं, तदधोऽपि 'अमला' इतिइन्द्राणीनाम लेख्यम्। ततो नैर्मृतकोष्टके 'अच्छरा' इति, पश्चिमकोष्टके 'शूचिमेघा' इति, वायव्ये 'नवमिका' इति, उत्तरकोष्टके 'ती' इति विष्णुबीजं तदधो 'रोहिणी' इति, ऐशानकोष्टके 'शिवा' इति, पूर्वस्यां 'पद्मा' इति, आग्नेयकोष्टके 'अंजू जाप विधि र्वक जपे । उसो तरह सब देवों के नाम का जाप वृष्टि के लिये जपे । उन का ध्यान करने से सब देवता संतुष्ट हो कर वृष्टि के करने वाले होते हैं ॥२३।। बुद्धिमान जन ग्रामदेवता हिंस्र देवता नागदेवता भूत देवता और यक्ष आदि देवों की और भगवती आदि देवियों की आशातना नहीं करें ।।२४।। सम्यग्दृष्टि जनो को भी जिनेश्वर के पूजन के बाद कायोत्सर्ग से रही हुई क्षेत्रदेवो का और भुवन देवी का विधि पूर्वक स्मरण करना चाहिये ।।२५।। "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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