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________________ (६४) मेघमहादये जहणणेणं एगं समयं उक्कोसेणं छमासा" इति । उदकगर्भः कालान्तरेण जलप्रवर्षणहेतुः पुद्गलपरिणामः तस्य चावस्थान जघन्यतः समयः समयान्तरमेव प्रवर्षणात्, उत्कृष्टतस्तु षएमासाः, षण्मासानामुपरि वर्षात् । एतेन प्रागुक्ताः सस्नेहवाताः पश्या वनस्पत्यादिहिता वायव इति सविस्तरं व्याख्यातम् । इति कतिपयवातैर्जातगर्भावदातै जलधरजलवर्षा रम्यवर्षाप्तिहेतुः । प्रथित इह जिनानामागमेषु द्वितीयः, कथित उचितवृत्या मेघमालोदयाय।। १११॥ इति श्रीमेघमहोदये वर्षप्रबोधापरनानि महोपाध्याय __ श्रीमेघविजयगणिविरचिते द्वितीयोवाताधिकारः। भगवन् ! उदक गर्भ की स्थिति कितने समय की है ? उत्तर - हे गौतम जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट मे छ: महीने की स्थिति है ।। इसी तरह गर्भ को उत्पन्न करने वाले अच्छे २ कितनैक वायुभों से मेव का पानी वर्षन। अच्छा वर्ष होने के हेतु हैं । जिनेश्वरों के आगमों में प्रसिद्र ऐसा दूसग अधिकार इस ग्रंथ में मेघमाला का उदय के लिये उचित वृत्ति में कहा गया है ॥ १११ ॥ श्रीसौराष्ट्रराष्ट्रान्तरर्गत-पादलिप्तपुरनिवासिना परिडतभगवानदासाख्य जैनेन विरचितया मेधमहोदये बालावबोधिन्याऽऽर्यभाषया टीकित: द्वितीयो वाताधिकारः। "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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