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________________ बाताधिकारः तस्मिन् वर्षे कणाः पुष्टा भवन्ति भुवि मङ्गलम् । यदि वाताभ्रलेशः स्याद् वातौ पूर्वोत्तरौ नहि ॥७०॥ न वर्षति यदा देवो दुष्टकाल सदादिशेत् । यत्राभ्रे स्वल्पके जाते मध्ये वातेऽल्पवर्षणम् ॥७१॥ यत्र मासविभागे च निर्मलं दृश्यते नभः । तत्र हानिश्च वृष्ठेश्च विज्ञेयं गर्भपातनम् ॥७२॥ यत्राभ्रं पश्ञ्चनाडीषु वातौ पूर्वोत्तरौ यदि । नत्र मासे भवेदृष्टिरित्येवं सर्वनिर्णय ॥७३॥ आषाढ्यां रात्रिकालेऽपि पवनः सर्वदिग्गतः । अरवृष्टैरपि च पूर्णिमा सुखदायिनी ॥ ७४ ॥ आग्रे यामे यदाभ्राणि वातौ पूर्वोत्तरौ यदि । गधे मासे तदा वृष्टिर्वाञ्छितादधिका क्षितौ ॥ ७५ ॥ आषायां च विनष्टायां नूनं भवति निष्कणम् । (५७) वर्ष में धान्य बहुत पुष्ट हों और जगत् में मंगल हो । यदि लेशमात्र भी पूर्व और उत्तर का वायु न चले ॥ ७० ॥ तो मेघ बरसे नहीं जिससे दुष्काल हो । जहां थोडे बादल हो और मध्यम प्रकार से वायु चले तो थोड़ी वर्षा हो ।। ७१ ।। जिस मास विभाग में आकाश निर्मल दीखें, उस मास में वर्षा की हानि और गर्भपात जानना || ७२ || जिस महीने की पांच बड़ी में बादल हो तथा पूर्व और उत्तर का वायु चले तो उस महीने में वर्षा हो । इसी तरह सब का निर्णय करें | ७३ || आषाढ "पूर्णिमाको रात्री के समय सब दिशा का वायु चले और बादल भी हो किंतु वर्षा न हो तो सुखदायक है ॥ ७४ ॥ यदि पूर्णिमा को प्रथम प्रहर में बादल हो तथा पूर्व और उत्तर का वायु चले तो प्रथम मास में पृथ्वी पर इच्छा से भी अधिक वर्षा हो ।। ७५ ।। यदि पूर्णिमा का क्षय हो तो धान्य की प्राप्ति न हो । ग्रहण वृक्षपात आदि के उपद्रवों से पूर्णिमा का "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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