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________________ (५२) मेघमहोदये सूर्यसौम्यसमायोगे वायुर्वारुणदिग्भवः । यदा शरत्सु विज्ञेयो वायुर्धान्यमहाफलम् ॥३९॥ नवमासान् यदा पूर्वो वायुश्चरति भूतले । स्वातौ मौक्तिकरूप्यानि बहुधान्यादिमङ्गलम् ॥४०॥ ज्येष्ठमासे वायुविचारःज्येष्ठमासे रविकरास्तपन्ति प्रचुरोऽनिलः। लूकासमन्वितो वाति घनगर्भस्तदा शुभः ॥४१॥ ज्येष्ठमासेऽष्टमी कृष्णा तथा कृष्णचतुर्दशी। दक्षिणानिलसंयुक्ता परतो वृष्टिहेतवे ॥४२॥ ज्येष्ठस्य यदि पञ्चम्यां दक्षिणः पवनश्चरेत् । तदा तिलास्तथा तैलं घृतं ऋयं तदाश्विने ॥४३॥ यदुक्तं मेघमालायाम्ज्येष्ठस्य शुक्लपञ्चम्यां गर्जित श्रूयते यदि। वायु चले तो नव नक्षत्रों में वर्षा नहीं होती है ॥ ३७ ॥ ३८॥ सूर्य चंद्रमा का योग के समय पश्चिम दिशा का वायु चले तो शरदऋतु में धान्य अधिक हों ॥ ३६॥ यदि नव महीने बराबर पूर्व का वायु चले तो स्वाति नक्षत्र में सीपी में बहुत मोती हों, धान्य भी बहुत और लोक में मंगल हों । ४० ॥ ज्येष्ठमास में सूर्य के किर या बहुत तप और बहुत गरम वायु चले तो मेध के गर्भ अच्छे होते हैं । ४१ ॥ ज्येष्ट मास में कृण अष्टमी और चतुर्दशी के दिन दक्षिण दिशा का वायु चले तो आगे वर्षा अच्छी होती है ।।४२!ज्येष्ट माम की पंचमः के दिन दक्षिण दिशा का वायु चले तो तिट तेल और वी म्वरीदना आश्विन महीने में लाभ होता है ।। ४३ ॥ मेवमाला में कहा है कि -ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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