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________________ (३८) मेघमहोदये लाभस्तैलघृतादिभ्यो भौमे वह्निभयं भवेत् ।। २०३॥ भौमवारे ग्रहे भानोरन्योऽन्यं नृपतिक्षयः । इन्दोद्महे च कर्पासरूतस्त्रमहर्षता ॥२०४॥ बुधे पूगोरक्तवस्त्रसङ्गहो लाभदायकः । गुरौ पीतरक्तवस्तुतैलगन्धादिलाभदः ॥ २०५॥ शुक्रे सुभिक्ष माङ्गल्यं सर्वलोकशुभंकरम् । शनौ युगन्धरीलाभः श्यामवस्तुमहर्घता ॥२०६॥ पीतरक्तवस्त्रताम्रवृषभादिकसङ्गहे। मासद्धये तस्य लाभ इत्युक्तं ज्ञानिभिः पुरा ॥२०७॥ अोऽर्द्वमासिके लाभस्त्रिभागश्च त्रिमासिके । चतुर्भागश्चतुर्मासेऽस्तमिते वर्षसम्भवः ॥२०८॥ ग्रहणाये च सर्वस्मिन्नुत्पातः प्रबलो यदा । और तैल वी आदि से लाभ हो । भोमवार को ग्रहण हो तो अग्निभय हो | २०३ ।। मंगलवार को सूर्य ग्रहण हो तो गजाओं में अन्योऽन्य विग्रह हो । चन्द्र ग्रहण हो तो कपास रूई और सूत महंगे हों ।। २०४ ॥ बुधवार को ग्रहण हो तो मुपारी तथा लाल वस्तु का संग्रह करना लाभदायक है । गुरुवार को ग्रहण हो तो पीली और लाल वस्तु तथा तैल गंधादिक संग्रह करना लाभ दायक है || २०५। शुक्र के दिन ग्रहण हो तो सब लोग में शुभकारक सुभिक्ष और मांगलिक होता है । शनिवार को ग्रहण हो तो युगंधरी (जुवार) से लाभ और काली वस्तु महँगी हों ॥ २०६ ॥ पीत तथा रक्त वस्त्र, तांबा, वृषभादिक का संग्रह करने से दो महीने पीछे उनसे लाभ होगा, ऐसा ज्ञानियों ने कहा है ||२०७॥ अर्द्र ग्रास से आधे मास में लाभ, तीन भाग से तीन मास में लाभ, चतुर्थ भाग से चौथे मास में लाभ, और अस्त में ग्रहण हो तो एक वर्ष में लाभ होगा। २०८॥ सब (चंद्र या सूर्य) ग्रहण की प्रादि में उत्पात प्रबल हो किंतु ग्रहण के "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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