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________________ शकुननिरूपणम् वर्षाज्ञानाय संस्थाप्यं प्रथमे पिण्डके जलम् । हितीये मृत्तिका स्थाप्या तृतीयेऽकारक: पुन: ॥८॥ शीर्घ वर्षति पानीये (पर्जन्यो) मृत्तिकायास्तु पिण्डके। पक्षान्तेन तु वृष्टिः स्यादगारे नास्ति वर्षणम् ॥८६॥ - अथ गौतमीयज्ञानम्--- ॐ नमो भगवओ गोयमसामिस्स सिद्धस्स बुखस्ताक्खीणमहाणस्स भगवन्! भास्करीयं श्रियं आनय २ परप२ आश्विनस्य चतुर्दश्यां मंत्रोऽयं जप्यते निशि। सहस्रमेकं तपसा धूपोत्क्षेपपुरस्सरम् ॥८॥ प्रातः पूर्णादिने मुखे लेख्ये गौतमपादुके। . . यजना सुरभिद्रव्यैरर्चनीये सुभाविना ॥८॥ यत्पात्रे पादुके लेख्ये वस्त्रेणाच्छाचते च तत् । मार्जारदर्शनं वय यावश्च क्रियते विधिः ॥८६॥ समये पात्रकं लात्वा भिक्षार्थ गम्यते गृहे । राजविवर हो ||८४॥ वर्षाको जानने के लिये प्रथमपिंडमें जल, दूसरे पर मृतिका (मिट्टी) और तीसरे पर कोयला रक्खें ॥ ८५ ॥ जलवाला. पिंड ग्रहण करे तो शीघ्रही वर्षा हो, मृत्तिकापिंड ग्रहण करे तो पक्ष (पंद्रह दिन) के पीछे वर्षा हो और अंगारपिंड को ग्रहण करे तो वर्षा न हो ॥८६॥ : इस मंत्रका आश्विन चतुर्दशी की रात्रिमें उपवास करके धूप पूर्वक एक हजार वार जाप करें ॥८७॥ पूर्णिमा के दिन प्रातः काल एक पात्र में श्रीपौतमस्वामी की चरण पादुका आलेखना, पीछे उसकी भक्ति पूर्वक सुगंधित द्रव्योंसे पूजा करें ॥८॥ जिस पात्र में पादुका भालेखी है उस. को वस्त्रसे ढंके हुए रक्खे और जबतक यह विधि करे तब तक बिल्ली को न देखें ॥८६॥ फिर भिक्षा के समय उस पात्रको लेकर भिक्षा के लिये "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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