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________________ (४६८) मेघमहोदये विपर्यये यत्त्विह रोहिणीजफलात्सदेवाभ्यधिकं निगद्यम् ॥३५॥. इत्याषाढपूर्णायां तुलातुलितयोजशकुनम् । अथ कुसुमलताफलम् -- फलकुसुमसम्प्रवृद्धिं वनस्पतीनां विलोक्य विज्ञेयम् । सुलभत्वं द्रव्याणां निष्पत्तिः सर्वसस्यानाम् ॥३६॥ शालेन कलमशाली रक्ताशोकेन रक्तशालिश्च । पाण्डूकः क्षीरिकया नीलाशोकेन शूकरिकः ॥३७॥ न्यग्रोधेन तु यवकस्तिन्दुकवृद्धथा च षष्टिको भवति । अश्वत्थेन ज्ञेया निष्पत्तिः सर्वसस्थानाम् ॥३८॥ जम्बूभिस्तिलमाषाः शिरीषवृद्धया च कङ्गुनिष्पत्तिः । गोधूमाश्च मधुकैर्यववृद्धिः सप्तपर्णेन ॥३९॥ . . अतिमुक्तककुन्दाभ्यां कर्पासः सर्षपान् वदेदशनैः । बदरीभिश्च कुलत्यांश्चिरबिल्वेनादिशेन् मुगान् ॥४०॥ और वीपरीत हो तो रोहिणीमे उत्पन्न हुआ फल से अधिक कहा गया है ॥३५॥ वनस्पतियों के फल और फूलों की वृद्धि ( अधिकता ) देखकर सब वस्तुओं की सुलभता और सब प्रकार के धान्यकी उत्पति जानना चाहिए ॥३६॥ शालवृक्ष के फलफूलों की वृद्धिसे कलमशाली, रक्त अशोक की वृद्धिसे रक्तशाली, दूधकी वृद्धिसे पांडुक, और नील अशोक की वृद्धि से शुकर धान्य की प्राप्ति होती है ॥ ३७॥ वड़की वृद्धि से यव, तिन्दुककी वृद्धिसे सही और पीपल की वृद्धिसे सब प्रकार के धान्यकी उत्पत्ति हो। ३८॥ जामनफल की वृद्धिसे तिल उड़द, शिरीष की वृद्धिसे कंगनी, महुऍकी वृद्धिसे गेहूँ और सप्तपर्ण की वृद्धिसे यव की वृद्धि होती है ॥३६॥ प्रतिमुक्तक और कुन्द के पुष्पवृक्ष की वृद्धि हो तो कपास, अशन की वृद्धि से सरसव, बेर से कुलथी और चिरबिल्बसे मूंग की वृद्धि होती है ॥४०॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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