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________________ शकुननिरूपणम् पूर्णैः समासः सलिलेन पूर्णो भनेः श्रुतैस्तैः परिकल्प्यननैः ॥ अथ वारादिसंहितायामाषाढपूर्णिमाविचारःभाषायां समतुलिताधिवासितानामन्ये चुर्यदधिकतामुपैति योजम् । तद्विर्भवति न जायते यदूनं, मंत्रोऽस्मिन् भवति तुला भिमंत्रणार्थम् ॥ २४॥ स्तोतव्या मंत्रयोगेन सत्या देवी सरस्वती । दर्शयिष्यसि यत्सत्यं सत्ये सत्यव्रता ह्यसि ॥२५॥ येन सत्येन चन्द्रार्कौ ग्रहा ज्योतिर्गणास्तथा । उतिष्ठन्तीह पूर्वेण पञ्चादस्तं व्रजन्ति च ॥ २६ ॥ यत्सत्यं सर्वदेवेषु यत्सत्यं ब्रह्मवादिषु । यत्सत्यं त्रिषु लोकेषु तत्सत्यमिह दृश्यताम् ॥२७॥ ब्रह्मणो दुहितासि त्वं मदनेति प्रकीर्तिता । रहे उस मास में वर्षा पूर्ण जानना और जो कलश टूट जाय, जल करने लगे या जलसे न्यून हो जाय तो अल्प वर्षा जाननी ॥२३॥ उत्तराषाढा युक्त आषाढ पूर्णिमा के दिन सब प्रकार के धान्यों को बराबर तोलकर और पूर्वोक्त मं से अभिमंत्रित कर रख दें; पीछे दूसरे दिन तोले जिस धान्य का बीज बढ़ जाय तो उस वर्ष में उसकी वृद्धि, और घट जाय उसकी हानि कहना । इस विधिर्मे नीचे तुलाभिमंत्रके लिये नीचे लिखा हुआ मंत्र पढ़ना ॥ २४ ॥ सत्य कहनेवाली देवी सरस्वती की मंत्रपूर्वक स्तुति करनी चाहिये; हे देवी सरस्वति ! आप सत्य बतवाली हैं, इसलिये जो सत्य है उनको दिखा दें ॥ २५ ॥ जिस सत्य के प्रभाव से चन्द्रमा, सूर्य ग्रह और ज्योतिर्गण ये सब पूर्वमें उदय होते हैं और पश्चिम में मस्त हो जाते हैं ॥ २६ ॥ सर्व देवों में ब्रह्मवादियों में और त्रिलोकमें जो सत्य है वह यहां दीखें ॥२७॥ तूं झाकी पुत्री है और 'मदना' नाम "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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