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________________ सर्वतोभद्रंयक्रम् (४७६) गुडखण्डाः शर्करा य खलं तिलाश्च शालयः ॥५९॥ घृतं मणिमौक्तिकानि वारुण्यां मासिकं शुभम् । पौष्णे श्रीफलपूगादि मौक्तिकं मणयोऽपि च ॥ बेडा ऋयाणकं सर्व वारुण्यां मासिकं शुभम् ॥६॥ प्रश्चिन्यां व्रीहयो जूर्णा वेसरोष्ट्रघृतादिकम् । . सर्वाणि धान्यवस्त्राणि मासयोत्तरा व्यथा ॥६॥ भरण्यां तुषधान्यानि युगन्धरी च वेध्यते । मरिचायौषधं सर्व याम्यां पीडाष्टमासिकी ॥३२॥ . इति नक्षत्रवेधे शुभाशुभफलम् । अथार्घ सम्प्रवक्ष्यामि यदुक्तं ब्रह्मयामले । एकाशीतिपदे चक्रे ग्रहवेधे शुभाशुभम् ॥६३॥ देशः कालस्तथापण्यमिति त्रेधानिर्णये । चिन्तनीयानि विद्धानि सर्वदेव विचक्षणः ॥४॥ भाद्रपदमें वेध हो तो गुड, खांड, सक्कर, खली, तिल, चावल, घी, मणि, मोती इनका वेध होता है तथा पश्चिम दिशा में एक महीने शुभ रहें । ५६ ॥ रेवती नक्षत्र में वेध हो तो श्रीफल, सोपारी, मोती, मणि, बेडा, ऋयाणक, वस्तुको वेध होता है तथा पश्चिममें एक महीने शुभ रहे ॥६०॥ अश्विनी में चावल, जूर्ण, वेसर, ऊंट, घी सब प्रकार के धान्य तथा वस्त्र को वेध होता है और दो महीने उत्तर में पीडा हो ॥ ६१ ॥ भरणी में तुष धान्य, ज्वार, मिर्च मादि औषध इन सब को वेधते है तथा दक्षिण में आठ महीने पीडा रहें ॥६२॥ -- : क्रय विक्रय पदार्थों के अर्घ (मूल्य) का निर्णय जैसा ब्रह्मयामल नामक ग्रंथ में ग्रह वेधद्वारा शुभाशुभ कहा है, वैसा इस इक्यासी पद वाला सर्वतोभद्रचक्र में कहता हूँ॥ ६३ ॥ सर्वदा विचक्षण पुरुषों को भर्ष का निर्णय करने योग्य देश, काल और पण्य ये तीनों के वेध का "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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