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________________ द्वारचतुष्टयम् हर्षणं सर्वलोकानां कर्षणं फलदायकम् ॥३०॥ हस्तार्कसंगमे वर्षा सर्वामीतिं निवारयेत् । स्वातिवृष्टिोक्तिकानि निष्पादयति नीरधौ ॥३२॥ सौम्यवारेऽर्कनक्षत्रे चारः शुभकरः स्मृतः । अर्कारमन्दवारेषु नक्षत्रभ्रमणेऽशुभम् ॥३२॥ इति ।। अथ सर्वतोभद्रचक्रम्----- कीरचकं प्रागुक्तं सर्वतोभद्रमुच्यते । तत्र नक्षत्रानुसाराद ज्ञेयं देशशुभाशुभम् ॥३॥ *सौम्यवेधे समर्घत्वं ऋरवेधे महर्घता । देश: कालच वस्तूनि ग्रहवेधस्त्रिषु स्मृतः ॥३४॥ भयानक्षत्रमें सूर्य आवे उस दिनको छोड़ कर बाकीके सब नक्षत्रों में वर्षा हो तो मब लोगोंको हर्षदायक और किसानों को लाभदायक होता है ॥३०॥ हस्त नक्षत्रमें सूर्य आवे तब वर्षा हो तो सब प्रकारकी ईतिका निवारण हो । स्वातिनक्षत्रमें सूर्य प्रानेसे वर्षा हो तो समुद्रमें सीपियों में मोती उत्पन्न करें ॥३१॥ शुभवारके दिन सूर्यका एक नक्षत्रसे दूसरे नक्षत्र पर गमन हो तोः शुभ फलदायक होता है । रवि, मंगल और इ.नि इन पारों में सूर्यका. नक्षत्र पर गमन हो तो अशुभ होता है ॥३२॥ कर्पूरचक पहले कहा है, अब सर्वतोभद्रचक कहता हूँ, इसमें नक्षत्रके वेधं के अनुसार देशमें शुभाशुभ जाना जाता हैं ॥३३॥ सौम्यग्रहका वेध हो तो, सस्ते और कूरमाहका वेध हो तो महँगे हों। ये देश, काल और वस्तु इन * जामने का प्रकारयस्मिन् भने स्थितः खेदस्ततो घेधत्रयं भवेत् । रविशेमात्र वामदक्षिणसम्मुखम् ॥१॥ . . यो प्रदेश पुनरज गजेन्द्रदेश, संस्थानादिद्वयगतस्य कलादिकस्य । एकोऽपरस्त्वभिमुसस्थितमध्यनासा,पर्यन्तभागयुतकेवलंधिप्पय पवार। सावक्षिका ररिमिरिच शीनगे। "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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