SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 489
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ब्रावतुष्टयम् अत्र रोहिणीचक्रम्मेषेऽर्कसंक्रमदिने यन्नक्षत्रं प्रजायते । संक्रान्तिसमये देयं पूर्वाधौ सच भव्यम् ॥७॥ ततः सृष्टयाः तटे चैकमेकसन्धौ च पर्वते । अष्टाविंशति ऋक्षाणामेवं न्यासो विधीयते ॥८॥ सन्धयोऽष्टौ तटान्यष्ट चतुर्दिक्षु पयोधरः । . विदिक्षु शैलाश्चत्वारस्तदन्तःस्थास्तु सन्धयः ॥६॥ रोहिणी यत्र सम्प्राप्ता स्थानं तच्च विचार्यते। शैले सन्धौ खण्डवृष्टिरतिवृष्टिः पयोनिधौ ।। तटे सुभिक्षमादेश्यं रोहिण्या सति सङ्गमे ॥१०॥ सन्धौ वणिग्गृहे वासः पर्वते कुम्भकृद्गृहे । मालाकारगृहे सन्धौ रजकस्य गृहे तटे ॥११॥ इति वर्षावासफलम् । दिना! मासार्यश्चअर्घकाण्डे त्रैलोक्यदीपककारः प्राह__मेष संक्रांतिके दिन जो नक्षत्र हो वह संक्रांतिके समय पूर्वदक्षिणादि क्रमसे चक्र लिखें, समुद्र में दो २ नक्षत्र |७|| तट संधि तथा पर्वत इन प्रत्येक में एक एक ऐसे अट्ठाईस नक्षत्र लिखें ॥८॥ संधि आठ, तट आठ, चार दिशामें चार समुद्र और विदिशामें चार पर्वत इनके अंत्यमें संधि हों ऐसा चक्र बनाना ॥ ६ ॥ इस चक्र में रोहिणी जिस स्थान पर हो उसका विचार करें ! पर्वत तथा संधि पर हो तो खंडवर्षा हो, समुद्र पर हो तो अति वृष्टि हो और तट पर हो तो मुभिक्ष हो ॥ १० ॥ संधि में रोहिणी हो तो वणिक् के घर, पर्वत में हो तो कुम्हार के घर, संधि में हो तो माली के घर और तटमें हो तो धोबीके घर वांका वास समझना ॥११॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy