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________________ मेघमहोदये बृहदृक्षाद्य भागश्च प्रान्तश्चन्द्र तिथेरपि । तदोत्तमस्वदेश्यार्घपादः स्याच्छास्त्रसम्मतः ॥१०६ ॥ गुर्वृक्षमध्यमो भागश्चन्द्र तिथ्योरथान्तिमः । तदा मध्यो भवेदर्धो गुरुनक्षत्रवैभवात् ॥ १०७॥ एवं चन्द्रतिथिभ्यां च महद्दक्षं विचारितम् । त्रिंशन्मुहूर्त्तकेऽप्येवमादिमध्यान्तकल्पना ॥ १०८ ॥ मध्यर्क्षस्याद्यभागञ्चेचन्द्र तिथ्पोरथादिमः । तदा मध्योत्तमार्घः स्याद्धान्यस्य विदुषो मतः ॥ १०६ ॥ मध्यर्क्षमध्यभागश्वेश्चन्द्रतिध्योश्च मध्यमः । तदा मध्योत्तमार्घः स्यादन्तिमेऽपि च मध्यमः ॥ ११० ॥ मध्यर्क्षस्यापि मध्यश्चेचन्द्र तिथ्योरथादिमः । तदापि मध्य एवार्थो द्वयोर्मध्येऽपि मध्यमः ॥ १११ ॥ पञ्चदशमुहूर्त्त भं चन्द्रेण तिथिना स्मृतम् । (३६) हो तो भी नक्षत्रका स्वभाव से उत्तम धान्य प्राप्ति हो ॥ १०५॥ बृहद्नक्षत्र का प्रथम भाग और चंद्रमा तथा तिथिका अन्त्यभाग हो तो उत्तन प्राप्ति हो यह शास्त्र में माननीय है ॥ १०६ ॥ बृहद्नक्षत्रका मध्य भाग और चंद्रमा तथा तिथिका अंत्य भाग हो तो नक्षत्रका प्रभावसे मध्यम प्राप्ति हो ॥ १०७ ॥ इसी तरह चंद्रमा तिथि और बृहद्नक्षत्रका विचार किया । उसी तरह तीस मुहूर्त्तत्राला मध्यनक्षत्रका भी आदि मध्य और अन्त्य ऐसे तीन भाग कल्पना करना ॥ १०८ ॥ मध्यनक्षत्रका आदि अंश और चंद्रमा तथा तिथिका भी आदि अंश हो तो मध्यम उत्तन धान्य प्राप्ति हो ऐसा विद्वानों का मत है ॥ १०६॥ मध्यनक्षत्रका मध्य भाग और चंद्रमा तथा तिथिका भी मध्य भाग हो तो मध्यम उत्तम हो और अंतिम भाग में हो तो मध्यम प्राप्ति हो ॥ ११० ॥ मध्यनक्षत्र का मध्य भाग और चंद्रमा तथा तिथिका आदि भाग हो तो मध्यम और दोनों मध्य भागमें हो तो भी मध्यम प्र.वि. "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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