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________________ (५२४) मेत्रमहोदये प्रचण्डा प्रथमा नांडी पचना दहनी ततः। सौम्यनीरजलाख्याता अमृताख्यात्र सप्तमी ॥४४॥ नक्षत्रे ये ग्रहा यत्र ख्याद्यास्तत्र भान् न्यसेत् । तित्रः पातालसंज्ञाः स्यु ड्यस्तिस्त्रस्तथोर्ध्वगाः ॥४५॥ एका मध्यगता नाडी फलमासां परिस्फुटम् । नामानुसाराविज्ञेयं कृत्तिकादिभसप्तके ॥४६॥ रुद्रदेवस्तु"मध्यमार्गस्थिता सौम्या नाडी तदग्रपृष्ठतः। सौम्पय.म्याभिषं ज्ञेयं नाडिकानां त्रिकं त्रिकम् " ॥४७॥ याम्यनाडीगतः क्रुराः सौम्या सौम्यदिशि स्थिताः । सौम्यनाडी तु मध्यस्था ग्रहानुगफला इमा ॥४८॥ प्रावृहकाले समायाते रवेरा समागते । नाडीवेधसमायोगान्जलवृष्टिनिवेद्यते ॥४९।। यत्र नाडीस्थितश्चन्द्रस्तत्रस्थैः ऋरसौम्यकैः। . तदा भवेद महावृष्टिर्या वत्तस्थांशके शशी ॥५०॥ . अट्ठाईस नक्षत्रों का स्वामी हैं ॥४३॥ प्रथमा प्रचंडा नाडी, पवना, दहनी, सौम्य, नीर, जल और अमृता ये कमसे नाड़ी के सात नाम हैं ॥४४॥ रेवि आदि ग्रह जिम नक्षत्र पर हो उस नक्षत्रसे रखें । तीन नाडी पाताल संज्ञक, तीन नाडी उर्ध्व गामिनी और एक मध्य नाडी हैं इनका नामानुसार कृत्तिकादि सात २ नक्षत्र पर से स्फुट फल है ॥४५॥४६ ॥ मध्यमें रही हुई सौम्य नाडी है उसके अ.गे पीछे की सौम्य और याम्यनाडी ये सीन २ जानना !! ४७ ॥ याम्पनाडीने कामह और सौम्यनाडीमें शुभग्रह, मध्यकी सौम्यनाडी ये सब ग्रहों का गम से फलदायक हैं ॥४८॥ वर्षाकाल के समय रविका आर्द्रा में प्रवेश हो उस समय नाडीवेध द्वारा मेघवृष्टि मानी भासी है ॥ ४६॥ जिस नाडी पर चंद्रमा स्थित हो उस नाडी पर कर "Aho Shrutgyanam'
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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