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________________ (४१४) मेघमहोदये + जइ अस्सिणाह दहदिण भाणो संकमणि वरिसए मेहो । तह जाइ विलयगर्भ अद्दादहरिक्खं नो वरिसं ॥ १५१ ॥ एवं व-संक्रान्तौ घनवर्षणाद्वहुसुखं पौधे समाधाश्विने, चैत्रादित्रितये च खण्डजलदाद्दुःखं सुखं मिश्रितम् । भाद्राषाढकयोर्जने बहुरुजः स्युः श्रावणे सम्पदो, धान्ये फाल्गुनिकेषु मध्यमसमा मार्गे तथा कार्त्तिके ॥ १५२ ॥ * संक्रान्तिनाढ्यो नवभिर्विमिश्राः, सप्ताहताः पावकभाजिताश्च । समर्थमेकेन समं द्विकेन, शुन्ये महर्चे मुनयो वदन्ति ॥ १५३॥ मोनमेषान्तरेऽष्टम्यां मङ्गले धान्यसङ्ग्रहात् । तो गर्भ का विनाश हो और आर्द्रादि दश नक्षत्रों में वर्षा न हो ॥ १५१ ॥ पौष माव और आश्विन में संक्रांति के दिन मेत्र वर्षा हो तो बहुत सुख हो, चैत्र वैशाख और ज्येष्टमें संक्रांतिके दिन वर्षा हो तो आगे खंडवर्षा होने से दुःख और सुख मिश्रित फल हो, भाद्रपद और आषाढकी संक्रांति को वर्षा हो तो रोग बहुत हो, श्रावण में सुख संपदा हो, फाल्गुन में धान्य प्राप्ति, और कार्तिक तथा मार्गशीर्ष की संक्रांति में वर्षा हो तो मध्यम वर्ष जानना ॥ १५२ ॥ संक्रांति की घडीमें नव मिलाना, उसको सात से गुणाकर तीनसे भाग देना, यदि एक शेष बचे तो रस्ते, दो बचे तो समान और शून्य शेष हो तो महँगे हो ऐसा मुनियोंने कहा है ॥ १५३॥ मीन और मेषकी संक्रांति के अंतर याने बीच में अष्टमीको मंगलवार हो तो +टी- मेषे सूर्ये सति आश्विन्यादिदशनक्षत्रेषु चन्द्रे दशदिनानि यावदू वर्ष शुभ, वर्षगणे तुक्रमार्द्रादि सूर्य वार्षिकनक्षत्राणां गर्भनाश इत्यर्थः श्रीहीर मेघमालोक्तम् । 0 * डी - संक्रान्तिनाड्यः खन्तु सतमिश्रा' 'संक्रान्तिना ड्य स्तिथिवार - वृक्षधान्याक्षरं वह्निहरे तु भागम्' इत्यपि पाठः । "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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