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________________ शुक्रोदय फलस् (२३) जालन्धरेऽपि दुर्भिक्षं विग्रहो रणसम्भवः । मनुष्यगणभे शुक्रो-दये सौराष्ट्रविग्रहः ॥११८ कलिङ्गन्देशे स्त्रीराज्ये मध्यम वर्षमुच्यते । मरुस्थले च दुर्भिक्षं घृतधान्यमहर्घता ॥११९॥ स्वर्ण रूप्यं महर्ष स्यात् पीडा गोमहिषीबजे । कार्पासतूलसूत्रादेमहर्घत्वं प्रजायते ॥१२०॥ नक्षत्रे राक्षसगणे शुक्रस्याभ्युदये सति । गुजरे पुद्गल भयं दुर्भिक्षं द्रव्यहीनता ॥१२१ पञ्चवर्ण पट्टसूत्रं मूल्येनापि च दुर्लभम् । श्रीफलं दुर्लभं मृत्युः श्रेष्ठपुंसश्च कस्यचित् ॥१२२॥ उत्पातश्चीनदेशे स्यात् सिन्धुदेशेऽतिविग्रहः । दिनत्रयमवाणिज्य विग्रहो मालवादिके ॥१२३॥ विग्रह और लडाई हो । यदि शुक्र उदय गनवगण के नक्षत्र में हो तो सौराष्ट्र देशमें विग्रह हो ॥११८॥ कलिंग देश और स्त्रोराज्य में यह वर्ष मध्यम रहे, मारवाड देश में दुर्भिक्ष, घी और धान्य महँगे हो ॥१.१६॥ सोना चांदी की तेजी हो, गौ भैंस की जाती में पीड़ा हो, कपास रुई सूत आदि महँगे हों ।।१२०॥ यदि शुक्र का उदय राक्षसगण के नक्षत्र में हो तो गुर्जर (गुजरात) देश में पुद्गल भय, दुर्भिक्ष और द्रव्यहीन हों ।। १२१॥ पंचवर्ण के पट्टसूत्र (रेशमी वस्त्र ) मोल से भी मिले नहीं अर्थात् बहुत तेज हो, श्रीफल का अभाव हो और कोई श्रेष्ठ-उत्तम पुरुष की मृत्यु हो ॥१२२॥ चीन देश में उत्पात, · सिन्धु देश में विग्रह, तीन दिन व्यापार बंद रहे और मालवा आदि देशमें विग्रह हो ॥१२३॥ १ मानवगण न झत्र--तीनों पूर्वा, तीनों उत्तरा, रोहिणी मार्दा और भरणी । २ राक्षगण नक्षत्र--कृत्तिका, मघा, आश्लेषा, विशाखा, शतभिषा, चित्रा, ज्येष्टा धनिष्ठा और मूल । "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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