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________________ (३८६) मेघमहोदये पहरदुगं वइसाहे जिडेगं अह आसाहे ॥२८॥ इत्थं तिथीनां कथिता यथार्हा, कथा यथार्था वितथा न किञ्चित् । सम्यग्वरं वर्तनकं विमृश्य, वर्षस्य वाच्यं सुधिया स्वरूपम् ॥२८॥ इति श्रीमेघमहोदयसाधने वर्षप्रयोधे महोपाध्याय श्रीमेघविजयगणिविरचिते तिथिफलकथनो नाम नवमोऽधिकारः॥ अथ सूर्यचारकथनो नाम दशमोऽधिकारः । संक्रान्तिविचारफलम् ---- अथादित्यगत्याधिगत्यान्दरूपं, यथाप्राप्तरूपैयरूपि स्वमत्या। तथा ब्रूमहे भूमहेशानतुष्ट थे, क्रमात् संक्रमाजन्यधान्यादिवार्ताम् ॥१॥ प्रहर, ज्येष्ठमें एक प्रहर और आषाढमें अर्द्ध प्रहर, इतने मासों में इतने समय ही वर्षा होकर रह जावे तो वह अकाल वर्षा क हीजाती है ॥२८॥ इसी प्रकार यथायोग कुछ भी असत्य नहीं ऐसी सत्य तिथियों की कथा कही । इसका अच्छी तरह विचार करके विद्वानों को वर्षका स्वरूप कहना चाहिये ।। २८१ ॥ सौराटाटान्तर्गत पादलितपुरनिवासिना पण्डितभगवानदासाख्यजैनेन विचितया मेवमहोइये बालावबोधिन्याऽऽर्यभाषया टीकितो तिथिकल कथननामा नवमोऽधिकारः । अब सूर्यकी गतिका ज्ञानसे वर्षका स्वरूप जैसा प्राचीन आचार्यों ने अपनी बुद्रिके अनुसार बनाया है, वैसा सूर्य मेषादि राशि पर संक्रमसे उत्पन्न होने वाले धान्य आदि का फलकथन राजाओं की प्रसन्नता के लिये "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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