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________________ तिथिफलकथनम् कार्पासरूतस्त्रादि ग्राय वैशाखलाभकृत ॥२२॥ अथवा देवयोगेन शनिवारस्य सङ्गमः। जलशोषः प्रजानाशनमस्तदा भवेत् ॥२२॥ अथ पौषमासः-- पौषमासे शुक्लपक्षे चतुर्थीदिनवासरे । यदा शनिस्तदादौस्थ्य बिमास्यं नैव संशयः ॥२२७॥ ससमी सोमवारेण पौषमासे यदा भवेत्। . तदा च महिषीवृन्दं म्रियते रोगपीडितम् ॥२२॥ थापनाद्रो व्रजेत् सूर्य-स्तावद् धान्यस्य संग्रहा। . शनिः पौषे नवम्यां चेत् पुरस्ताल्लाभकारणम् ।।२२९॥ एकादश्यां पौषशुक्ले कृत्तिकाभोगतः स्मृतः। रक्तवस्तुमहाल्लाभः सघान्यात प्रथमा बुधे (ऽम्बुद)॥२०॥ पूर्वाषाढा तथा ज्येष्ठा-ऽमावस्यां + पौषमासके। . ॥ २२५ ॥ यदि दैवयोग से शनिवार हो तो जल का सूखना, प्रजा का नाश और छत्रभंग हो ॥ २२६ ॥ इति मार्गशीर्ष मास ॥ पौष शुक्ल चतुर्थी को शनिवार हो तो तीन मास दुःख रहें इस में संदेह नहीं ॥२२७॥ पौष सप्तमी सोमवारको हो तो भैंस रोग से पीडित होकर मरें ॥२२८॥ पौष नवमीको शनिवार हो तो जब तक सूर्य भाद्रीमें न भाये तब तक धान्य संग्रह करना उचित है भागे लाभदायक है ।। २२६॥ पौष शुक्ल एकादशीको कृत्तिका हो तो लाल वस्तु से बड़ा लाभ हो और प्रथम वर्षा तक धान्य से लाभ हो ॥ २३० ॥ पौष अमावसको +टी-अत्र-पोसह मास अमावलि, पुण्य कृतिग पूर्वा होय । वार मंगल रवि थावरइ, तो घरस माठो होय ॥१॥ इति पुरातनवचनात् पुष्य उपतः न चास्य सम्मथः । वृधिकादित्रयसूर्ययोगात् एवं कृत्तिकायामपि भाग्यम् । 'पुसा जेट्ठग हो' इति पाठः शुद्धः । श्रमावास्यां शनिः पौषे लोक शोककारः परः । दोषानशेषान संशोभ्य सुमितं कुरुते गुरु "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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