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________________ कर्पूरचक्रम् (१९) कपूर उवाच-एतचक्रं नृपश्रेष्ठ ! गर्गाचार्येण भाषितम् । सर्वज्ञशासनादेशाद् ज्ञानं यन्त्र प्रकाशितम्।। ९२ ।। पुरग्रामाकरस्था वा नदीपर्वतवासिनः । तेषां शुभाशुभं सर्व ग्रहयोगेन बुध्यते ॥ १३ ॥ अवन्त्यादौ मण्डलान्ते योजनानां शतदये। लोके दुःखं सुखं सर्व ज्ञायते चक्रचिन्तनात् ॥ १४ ॥ अवन्तीतः समारभ्य सृष्टिमार्गे निरूपयेत् । अकानां च लिपिर्लेख्या नवभिर्भाज्यतेऽथ सा ।। ९५ ॥ शेषाङ्के वर्षराजाकं योजयित्वा दशाक्रमात् । शुभाशुभं च विज्ञेयं ग्रहवासेन मण्डले ॥ ६ ॥ कचित्तु तहिशस्त्वके योज्यते ग्रामतो ध्रुवः । संमोल्य शनिनक्षत्रं नवभिर्भागमाहरेत् ॥ २७॥ शेषाङ्कसंख्यया वर्ष-राजतो गणने कृते। विंशोत्तरीदशारीत्या ग्रहाणां फलमूचिरे ॥ ८॥ कर्पूर बोला .. हे नृपश्रेष्ठ ! यह चक्र गर्माचार्य ने कहा, इसने सर्वज्ञ प्रणीत आगप्नों का ज्ञान इस यन्त्र द्वारा प्रकाशित किया । ६२ ।। पुर गांव किला नदी पर्वत आदि स्थानों में रहने वालों का शुभाशुभ सब ग्रह योग से इस चक्र द्वारा जाना जाता है ।। ६३ ।। इस चक्र को जानने से उज्जयिनी से चारों तरफ के देशों में दो सौ योजन तक मुख दुःख सब जान सकते हैं ।। ६४ ॥ उज्जयिनी से प्रारम्भ कर सृष्टिमार्ग द्वारा निरूपणं किए हुए १४५ आदि अंकों की लिपि लिखना, उसमें नव का भाग देना ।। ६५ ।। शेष बचे उसमें वर्ष के राजा का अंक जोड़ कर विंशोतरी दशाकमसे ग्रहों का देशों में शुभाशुभ फल जानना || ६६ ॥ कोई इस तरह भी कहते हैं - उस दिशा के अंक में गाँव का ध्रुवांक मिलाकर, फिर उसमें शनि नक्षत्र को मिला दें और पीछे उसमें नव का भाग दें ॥ ७ ॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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