SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 386
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मेघमहोदये अत्र लोके प्राह+ आठमी काली पक्खना, सनि असलेसा जुत्त । मेह म जोइस महीयले, वरसे एहज वत्त ॥१६॥ ग्रन्थान्तरेऽपि-+नवम्यां स्वाति संयोगे भाद्रमासे सिते वदा। तदा सुखमयी भूमिघृतधान्यसमन्विता ॥१६॥ भाद्रशुक्लचतुर्थी चे द्वारा जीवेन्दुभार्गवाः । उत्तराहस्तचित्राभिः सुभिक्षं निश्चयात् तदा ॥१६२॥ भाद्रे धवलपञ्चम्यां स्वातियोगो यदा भवेत् । मासैश्चतुर्भिः कर्पास-रूतादेर्लाभसम्भवः ॥१६३॥ भाद्रमासे तृतीयायां भौमे चोत्तरफाल्गुनी। तदा वृष्टिकरो नैव प्रोन्नतोऽपि धनाधनः ॥१६४॥ भाद्रपदामावास्याफलम् ---- लोक भी कहते है कि भाद्रपद कृष्ण अष्टमी या आश्लेषा नक्षत्र के दिन : शनिवार हो तो पृथ्वी पर मेह न बरसे, वार्ता वरसे याने मेह का वृतांत ही सुना जाय ॥ १६० ॥ ग्रन्धान्तर में भी-- म द्र गुक्ल नवमी या स्वाति नक्षत्र के दिन शुक्रवार हो तो घी और धान्यसे पूर्ण सुखमयी पृथ्वी हो ॥१६१॥ भाद्रशुक्ल चतुर्थी को बृहस्पति सौंप या शुक्रवार हो और उत्तराफाल्गुनी हस्त या चित्रा नक्षत्र हो तो निश्वर से मुभिक्ष होता है ॥१६२ ॥ भाद्रशुक्ल पंचमी को स्वाति नक्षत्र हो तो चार मास कपास रूई आदि से लाभ हो ॥ १६३ भद्रास की तृतीया के दिन मंगलवार और उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र हो तो उन्नत मेव उदय होकर भी न बरसे ॥ १६ ४ ॥ + टी-कृणादिमासमते इदं घटते, न शुक्लादिमते । अत्रायमर्थ:-भाद्रकृष्णे अष्टमी तथा आश्लेषानक्षत्रदिने च एतयोदिनयोः शनिघारोन शुभः। भाद्र शुक्ले स्वातिदिने यद्वा नवम्यांसितेशुक्रवारोः शुभः। यथा सूत्रव्याख्यायां योगी अघटमानौ । "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy