SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 382
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३६२) मेघमहोदये श्रावणे कृष्णपक्षस्य प्रतिपहिवसे धृतौ। योगे धृतिः स्याद्धान्यस्य शेषयोगेषु विक्रयः ॥१३॥ श्रावणे वा भाद्रपदे प्रथमायां श्रुतिद्वयम् । कृष्णपक्षे तदा ज्ञेयं सुभिक्षं निश्चयाजने ॥१३॥ द्वादश्यां श्रावणे कृष्णे मघा यहोत्तरात्रयम् । तत्राभ्रे जलवृष्टौ वा जलयोगस्तदा महान् ॥१३७॥ श्रावणस्य त्रयोदश्यां रेवत्या रवियोगतः । बहुधान्यानि वस्तूनि जायन्ते बहुधान्यकम् ॥१३८॥ शनौ श्रावणसप्तम्यां जलपूर्णा क्सुन्धरा । श्रावणस्य चतुर्दश्या-मायामप्रसङ्गहः ॥१३॥ अमावस्या विचारःश्रावणस्य त्वमावस्यां पुष्याश्लेषा मघा यदि । मध्यम वर्षमादेश्यं वृष्टिर्न महती यदा ॥१४॥ यतः सारसङ्गहे-विशाखाद्यष्टके दर्श दुर्भिक्षं बहुधास्मृतम्। श्रावण कृष्ण प्रतिपदा के दिन धृतियोग हो तो धान्यका संग्रह करना उचित हैं और बाकीके योगमें विक्रय करना उचित है ॥१३५॥ श्रावण या भाद्रपद के कृपक्षकी प्रतिपदा के दिन श्रवण या धनिष्टानक्षत्र हो तो लोकमें निश्चयसे सुभिक्ष हो । १३६॥ श्रावणकृष्ण द्वादशीके दिन मया या तीनों उत्तरा इनमें से कोई नक्षत्र हो और बादल हो या वर्षा हो तो बड़ा जलयोग जानना ॥१३७॥ श्रावणकी त्रयोदशीके दिन रविवार और रेवती नक्षत्र हो तो बहुत धान्य और धनिया आदि वस्तु उत्पन्न हों ॥१३८॥ श्रावण सप्तमी के दिन शनिवार हो तो पृथ्वी जलसे पूर्ण हो । यदि श्रावण चतु. दशी आर्द्रा युक्त हो तो धान्यका संग्रह करना उचित है ॥ १३६ ॥ श्रावण आमावस को पुष्प आश्लेषा या मघा नक्षत्र हो तो वर्ष मध्यम हो और वर्षा अधिक न हो ॥ १४.० ॥ सारसंग्रह में-अमावास्याके दिन "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy