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________________ मेत्रमहोदये सतमागे शेषधान्य-मणाः स्युरेकरूप्यके ॥२६॥ दशम्या रवियुक्ताया घटिका गणयेत् मुभी। षष्टिभक्ते भवेच्छेषं धान्यार्घमणधारणाः ॥२॥ पुन:- ज्येष्ठाषाहमासयुग्मे यावत्योऽष्टमिका रवी। तावन्मगा रूप्यकस्य केचिदेवं बदन्स्यपि ॥२८॥ यवा-यावत्यः शनिना युक्ता दशम्यो रविण्याचवा । भवन्ति तावन्मानानि स्कन्दकेन क्वचिजने ॥१९॥ अथवा- अमावस्यः सोमवत्यो यावत्यस्तिधिपत्र। पञ्चम्यः सोमबत्यो वा रूप्यात्तावन्मणाशनम् ॥३० ग्रन्थान्तरे- चैत्र अमावसि जे घडी, बरते टीप्पण माय। तेसा सेर पीरोजीया, काती धान्य बिकाय ॥३१॥ मतान्तरेण नव्याः प्राहुः - धान्यविंशोएकामध्ये क्षुधाविंशोपका मीलने विहिते। वर्षाविंशोपकविना कृते धान्यमणजा रूप्यात् ॥३२॥ से भागदेना जो शेष बचे उतने मण धान्य एक रूपियाका समकमा IRANE रविवार युक्त दशमी की जितनी बड़ी हो उसमें साठ से भाग देना सो क्षेत्र बचे बह मण धान्यका मूल्य समझना ॥ २७॥ ज्येष्ठ और मावाद से दोनों मासकी अष्टमी रविवार के दिन जितनी घड़ी हो उसना मब मास्वविये का बिके ऐसे केई बोलते हैं ॥२८॥ यदि शनि या मविवार के दिन दशग्री जितनी घड़ी हो उतने माणा धान्य एक स्कंइसे मिले ॥२६॥ पंजों जितनी सोमवती अमावस हों या जितनी सोमवती पंचमी हो उतना मदत धान्य बिके ॥३०॥ चैत्रमासकी अमावस जितनी घड़ी पंचांगमें हो उसना पीरोजियां शेरों से कात्तिकमे धान्य बिर्फे ॥ ३१॥ धान्य के विशोषका में सुधाके विंशोपका मिलाकर इसमेंसे वर्षा के विशापका घटा देना जो शेष बचे उतना मम धान्य बिके ।। १२ ।। . ... "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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