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________________ तिथिफलकथनम् ..(३४१) महतया सणिवारो नक्षतं रोहणी यमिति योगे। दुपट्टसयलबरिसं अप्पाबुट्टी तया हवा ॥१२॥ शत्रशुक्लप्रतिपदिघर्षराजफलकथनादेव फलं सुलभम्। कप शुक्लससम्मा-मार्दाभोगे यथोचितः। घिमास्यां धान्यसंक्षेपः श्रावणाज्जलदोदयः॥१॥ औने दशम्यां शनिना युक्ता वारेण चेन्मघा । सदा धान्यं समर्घस्याजाते मेघमहोदये ॥१४॥ चैत्रे शुभे यथायोग्यं स्तकासबार्जराः। युगन्धरी व संग्राही ज्येष्ठाषाहादिलाभदः ॥१५॥ विशोधकानयनविचार:बेत्रादिप्रथमा यावत् तनक्षत्रैरलंकृता । सात्पिण्डे रविनिर्भक्ते ये लब्धास्ते विंशोपकाः ॥१६॥ अंध विशेषोऽपि- प्राषाढसितपक्षस्य छितीयापुष्यसंयुता। पावन्मात्रं भवेत् पुष्यं तावन्मात्रा विंशोपकाः ॥१७॥ . सहित हो सो चार मास तक धन धान्य सस्ते हों ॥११॥ चैत्र शुक्ल तृतीया के दिन शनिवार रोहिणीनक्षत्र के सहित हो तो समस्त वर्ष दुःखदायी हो और थोड़ी वर्षा हो ॥१२॥ चैत्र शुक्ल सप्तमी भादनिक्षत्र से युक्त हो तो तीन मास धान्य थोड़े और श्रावण में मेघ वर्षा हो ॥ १३ ॥ चैत्र शुक्ल दशमी शनिवार के दिन मधानक्षत्र हो तो मेघका उदय होने पर धान्य सस्ते हों ॥१४॥ चैत्र शुक्र परमें यथायोग्य रूई, कपास, बाजरी और जूआर इनका संग्रह करने से ज्येष्ठ और प्राषाढ आदि मासमें लाभदायक है ॥१५॥ मैत्रशुक्ल प्रतिपदा जितनी बड़ी हो उसमें उस दिनके नक्षत्र जोड़कर बासे, भाग दो जो लब्धि मिले वह विंशोपका समझना ॥१६॥ पाषाढ शुद्वितीया के दिन पुष्य नक्षत्र जितनी बड़ी हो उतना विंशोपका जानना "Aho Shrutgyanam'
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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