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________________ मेधमहोदये रायाण ठाणभंसो पयासुहं च बहुघणावुट्टी। संवच्छरपत्याओ वासापुन्नो हवइ देसो ॥७४॥ सुक्के मिच्छाण जसं बहुवस्सा मेहसंकलियं । उतम जाई पीडा धणधन्न समाउला पुहवी ॥७॥ पुनः-युवाइ दिसा चउरो जाया विचरंति चउसु विदिसासु। अंगारयतमसणिया सा परचकं भयं घोरा ॥५६॥ कूरा कुणंति दुक्खं सेसा सव्वे सुहंकरा नेया । संमुह दाहिणवामा दिट्ठीए सुहयरा हुंति ॥७॥ सूरो वि हरह तेयं संमुहा हवइ रायलोयाणं । सोमो करइ सामं भीमो अग्गी अइसारो ॥७८॥ बुद्धिकरो वुढिकरो बहुअ लोयाण बहुय केकहरो । कोसं कोहागारं पूरेई सुरगुरू उडूहो ॥७९॥ नाश, रोग का संभव और स्थान स्थान पर राजांनों का संहार हो ॥७३॥ केतुफल--राजाओं का स्थान भ्रष्ट हो, प्रजा सुखी, : बहुत मेघवर्षा, और देश संवत्सर तक वर्षा से पूर्ण हो ॥७४॥ शुक्रफल-ग्लेच्छों का यशः हो, मेवों से आच्छादित बहुत वर्षा हो, उत्तर जन को पीड़ा और धन धान्य से समाकुल (पूर्ण) पृथ्वी हो ॥ ७५॥ फिर भी---- पूर्वादि चार दिशा और चार विदिशा में जो ग्रह विचरते हैं, उनमें मंग्ल राहु और शनि ये काग्रह परचक्र का भपकारक हैं ॥७६!! कांग्रह दु:ख कारक हैं तथा बाकी के सब प्राह सुखकारक हैं, और ये संमुख दक्षिण और बायी दृष्टि से सुखदायक हैं ॥७७॥ सूर्य संमुख हो तो राजलोगों के तेज का नाश करता है। चंद्रमा --शांतिदायक है । मंगल-अग्नि और रोग करता है॥७८॥ बुध-बहुत वर्षाकारक, तपा केकयदेश के लोगों का बहुत विनाश कारक है । गुरु-खजाना और कोठार को समस्त प्रकार से पूर्ण करें ॥७६।। शुक्र-राजा प्रजा की वृद्धि याने उन्नतिकारक मौर "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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