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________________ (३३८) मेधमहोदये "क्षुद्रपारखण्डधूर्तेषु तथारिक्तापहासिके । ज्ञानं न कथ्यतामेति यदि शम्भुः स्वयं वदेत् ॥१८॥ कथमपि सविशेषं गर्भसन्दर्भ एषः , प्रथित इह जिनेन्द्रोन्निवयोधानुरोधात् । अधिजलधिजलात् + स्यान्मेघमाला विशाला, सफलमपि किमस्या सारमात्तुं हिं शक्यम् ॥९१६।। इतिश्रीमेघमहोदये वर्षप्रयोवे तपागच्छीयमहोपाध्याय श्री मेघविजयगणिविरचिते गर्भकथनोऽष्टमोऽधिकारः ॥ शंभुभी आज्ञा दे तो भी क्षुद्र पाबंड इतः तथा व्यर्थ उपहास करनेवाले ऐसे मनुष्योंको यह ज्ञान नहीं कहें ॥ ११८॥ श्री मिनेन्द्रभगवानका परमज्ञानकी सहायतासे किसी भी प्रकार मेव.गर्भका विस्तारपूर्वक संग्रह किया । महासमुद्र के जलसे भी अधिक विशाल ऐसी · मेत्रमाला' है यह समन तो क्या इसके सारको भी कहने को...समर्थ है ? ॥ ११६ ॥ सौराष्ट्रराष्ट्रान्तर्गत-पादलिप्तपुरनिवासिना पण्डितभगवानदासा व्यजैनेन विचितया मेघमहोदये वालाबोधिन्याऽऽर्यभाषया टीकितो गर्भकथननामाष्टमोऽधिकारः । aree SH EXANA xटी-समुदेसारस्याहार्दलोत्पत्तिबहुला तेनैवसमुद्राजलभरणमिति कविरुटेरपि । मरुदेशादो वैरस्यात् क्षारोत्पत्तिरिव तेन लुकावासोऽपि । "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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