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________________ मेघगर्भलक्षणम् (३३१) गर्भविनाशलक्षणम् -- गर्भोपघातलिङ्गान्युल्काशनिपांशुपातदिग्दाहाः । क्षितिकम्पखपुर की लककेतु ग्रहयुद्ध निर्घाताः ॥ ८१ ॥ रुधिरादिवृष्टिकृत परिवेन्द्रधनूंषि दर्शनं राहोः । इत्युत्पातैरेतैस्त्रिविधैश्चान्यैर्हतो गर्भः ॥८२॥ स्वर्तुः प्रभाषजनितैः सामान्यैर्यैश्च लक्षणैर्वृद्धिः गर्भाणां विपरीतैस्तैरेव विपर्ययो भवति ॥८३॥ भाद्रपदाद्वयविश्वाम्बुदेव पैतामहेष्वथर्क्षेषु । सर्वेष्वृतुषु विवृद्धो गर्भो बहुतोयदो भवति ॥ ८४ ॥ शतभिषगाश्लेषार्द्रास्वातिमघासंयुतः शुभो गर्भः । पांसु बहून् दिवसान् हन्त्युत्पातैर्हेतैस्त्रिविधैः ॥ ८५ ॥ मार्गशिरादिष्वष्टौ षट्षोडश विंशतिश्चतुर्युक्ताः । अब गर्भ विनाश कारक लक्षण कहते है- गर्भके समय उल्कापात, वज्राघात, धूलिकी वर्षा, दिग्दाह, भूमिकम्प, गन्धर्व नगर, कोलक, केतु, ग्रहयुद्ध, निर्वातशब्द, रुधिर आदिकी वर्षा होनेसे विकारपन, परिघ, इन्द्रधनुष और राहु का दर्शन इन सब उत्पातों से और दूसरे तीन प्रकार के उत्पातों से गर्भका विनाश हो जाता है ॥१-८२॥ अपने ऋतुके स्वभाव में उत्पन्न हुए गर्भ साधारण लक्षण द्वारा बढते हैं और यही लक्षण विपरीत होनेसे गर्भकी हानि होती है ||३|| पूर्वाभाद्रपदा, उत्तराभाद्रपदा, पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा और रोहिणी इन नक्षत्रों में उत्पन्न हुए गर्भ सब ऋतु में वृद्धि पाते हैं और बहुत जलदायक होते हैं ॥ ८४ ॥ शतभिषा, आश्लेषा, आर्द्रा, स्वाति और मघा इन नक्षत्रों में उत्पन्न हुए गर्भ शुभ होते हैं और बहुत दिन तक पोषण करते हैं परंतु तीन उत्पातों से हने हुए हो तो नष्ट हो जाते हैं ॥८४॥ मार्गशिर में शतभिषा आदि पांच नक्षत्रों में उत्पन्न हुए गर्भ साढ़े छः मास बाद आठ दिन तक बरसते हैं । इसी तरह पौष के उत्पन्न " Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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