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________________ वर्षराजादिकफलम् (३०७) सा शिमलदा ज्ञेया शीघ्र मेघमहोदयः ॥ २८४॥ ऐक्ट्री च जलदा विशुदाग्नेयी जलनाशिनी। याम्या चाल्पजला प्रोक्ता वातं करोति वायवी ॥२८॥ प्रभूतजलदा शेया वामनी सस्यसम्पदे । नैतिनिर्जला प्रोक्ता कौबेरी क्षिप्रवर्षिणी ॥२८॥ ऐशानी लोकशुभदा विशुनेदा इति स्मृताः। यत्र देशे सुभिक्षं स्वाद विद्युत्तत्रैव गच्छति ॥२८॥ दिक्षु भूता स्थितिणुप्ता मेघानां मार्गदर्शिनी । विद्युद्धीना न गर्जन्ति न वर्षन्ति जलं विना ॥२८८॥ मालियालम निर्धातश्चात्युष्यामनुरुणता । अस्वाब मिरनं च षडेते वृष्टिलक्षणाः ॥२८९॥ चतु:कोदिसाहमाणि चतुर्लक्षोत्तराणि च । मेघमालामहाशानं तन्मध्यादेतद्धृतम् ॥२९॥ शीघ्र ही मेघका उदय जानना ॥ २८४ ॥ पूर्व दिशामें बिजली चमके तो जलदायक है। आनेय दिशामें चमके तो जलका नाशकारक है । दक्षिण में चमके तो थोड़ा जल बरसे । वायव्य दिशा में चमके तो वायु चले ॥ २८५॥ पश्चिम दिशामें बिजली चमके तो बहुत वर्षा हो और धान्य संत्ति अच्छी हो। नैर्ऋत्य दिशामें चमके तो जलवर्षा न हो । उत्तर दिशा में चमके तो शीत्र ही जल बरसे ॥२८६॥ ईशान दिशामें बिजली चमके लो मनुष्य को सुखदायक है , ये बिनजी के लक्षण कहें । जिस देश में मुभिक्ष हो वहां ही बिजली जाती है ॥२८७॥ यह दिशाओं में स्थित रह का मेघों को मार्ग दिखाती है। बिजली के विना गर्जना नहीं होती और जलके विना वर्मा नहीं होगी ॥२८॥ वायु का अधिक चलना या नहीं चलना, अधिक उष्माता या ठंडी, अधिक बादल या बादल रहित, ये छः टिके लक्षण हैं ॥२८६॥ चार क्रोड़ हजार और चार लाख अधिक जो "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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