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________________ वर्ष राजादिकफसम् (२९९) सर्वान् दोषान् निहन्त्येव सुभिक्षं भुवि जायते || २३१|| श्रावये बहुला विद्युद्द्धर्जितं च पुनर्धने । वृष्टिस्तदा मनोऽभीष्टा कुरुते वत्सरं शुभम् ॥ २३२॥ आषणे कृष्णपक्षे चे चतुर्थ्यामरुणोदये । वादलं वृष्टिरनिशं सर्वत्र सुखवृष्टिकृत् ॥ २३३॥ श्रावणे कृष्णपञ्चम्यां निर्मलं गगनं शुभम् । तदाष्टादशयामान्त - घनस्तोयं व्यपोहति ॥ २३४ || चतुर्दश्यां च कृष्णायां वार्दलानि भवन्ति न । तदा दानवदुःखानि न भवन्ति महीतले ॥ २३५ ॥ अमावास्यां श्रावणस्य यदि वृष्टी घनाघनः । चराचरं तदा विश्वं सुखभागू न चलाचलम् ॥२३६॥ चित्रास्थातिविशाखासु श्रावणे न जलं यदा । तदा कुलपादिकं कृत्वा नदीतीरे गृहं कुरु ||२३७|| नभः प्रथमपञ्चम्यां यदि वृष्टः पयोधरः समय बादल श्रावण मास के प्रथम पक्ष (कृष्णपक्ष) में अश्विनीनक्षत्र के दिन मेघ बरसे तो सब दोष दूर होकर सुभिक्ष होता है ॥२३१॥ श्रावण में बहुत बिजली चमके, गर्जना हो और वर्षा हो तो मनोवांछित वर्षा हो और संवत्सर शुभ हो ॥ २३२ ॥ श्रावण कृष्ण चतुर्थीको सूर्योदय के तथा वर्षा हो तो सर्वत्र निरन्तर सुखदायक वर्षा हो ॥ २३३ ॥ श्रावण कृष्ण पंचमी दिन आकाश निर्मल हो तो श्रेष्ठ है, इससे अठारह प्रहर के बाद मेघ वर्षा हो ॥ २३४ ॥ श्रावण कृष्ण चतुर्दशी के दिन वादल न हो तो दानवोंसे दुःख पृथ्वी पर न हों ||२३५ || श्रावणकी अमावस के दिन वर्षा हो तो चराचर विश्व सुखी नहीं होता || २३६ ॥ श्रावण में चित्रा स्वाति और विशाखा नक्षत्र के दिन वर्षा न हो तो कूप आदि खोदकर नदीके किनारे घर बनाना उचित है ॥ २३७ ॥ श्रावणके प्रथम पक्षकी पंचमीको वर्षा हो "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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