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________________ वर्षराजादिकपालम् उदग्धान्यार्द्धनिष्पति-दक्षिणस्यां विकालता ॥१४॥ मिथुने बहुलं युद्धं पूर्वस्यां धान्यविक्रयः । उदग्दक्षिणयोर्मेघा बहवो धान्यसङ्ग्रहः ॥१४४॥ पश्चिमायां स्वल्पमेघा-श्छन्नभंगश्च विग्रहः ॥ मध्यदेशेऽर्द्धनिष्पत्ति-श्चतुष्पदसरोगता ॥१४॥ कर्के सुखानि पूर्वस्या-मुत्तरस्यां तु विग्रहः । स्यान्मासनवकं यावद् दुर्भिक्षं पश्चिमे दिशि ।।१४६।। धान्ये मासाष्टकं याव-चतुष्पदे च विक्रयः । दक्षिणस्यां मध्यदेशे सुख पीडा चतुष्पदे ॥१४॥ सिंहलग्ने दक्षिणस्यां दंष्ट्राभयमुदीर्यते । धान्ये समर्घता मास-षट्कं यावद् घनो महान् ॥१४८॥ पश्चिमायां धातुवस्तु-फलादीनां महर्घता। उत्तरस्यां महावृष्टिः सुखं राज्ये प्रजासु च ॥१४९॥ पूर्वयामर्द्धनिष्पत्तिः श्रेयोग्रे मासपञ्चकात् । वर्ष प्रवेश हो तो पश्चिममें दुष्काल । पूर्वमें राजविग्रह । उत्तरमें धान्यकी प्राप्ति मध्यम और दक्षिणमें विशेष काल हो ॥१४३॥ मिथुन लग्रमें वर्ष प्रवेश हो तो युद्ध विशेष हो, पूर्वमें धान्यका विक्रय करना, उत्तर और दक्षिण में वर्षा बहुत हो धान्यका संग्रह करना उचित है ॥१४४॥ पश्चिममें वर्षा थोड़ी, छत्रभंग और विग्रह हो, मत्र्यदेशमें अर्द्ध प्राप्ति और पशुओं में रोग हो ॥ १४५ ॥ कर्क लग्नमें वर्ष प्रवेश हो तो पूर्व में सुख, उत्तर में विग्रह हो, पश्चिा में नव मास दुकाल रहे ।।१४६॥ आठ मास पर्यन्त धान्य और पशुओं को बेचें, दक्षिणमें मध्यदेश में सुख और पशुओंको पीडा हो ॥१७॥ सिंह लग्नमें वर्ष प्रवेश हो तो दक्षिणमें दाढवाले जन्तुओं का भय, धान्य छ मास तक सस्ते रहे और वर्षा अधिक हो॥१४८॥ पश्चिममें धातु वस्तु और फलादिक मगे हों । उत्तरमें महावर्षा, राजा और प्रजाको सुख हो ॥१४॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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