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________________ (१०) मेघमशेदये अनुगात स्वभावेन देशे स्युर्जलयोनिकः। बहवः पुद्गला जीवा महावृष्टिस्तदा भवेत् ॥ ३८ ॥ एवं च जाङ्गलेऽपि स्यु-भूयांसो जलयोनिकाः। शुभग्रहप्रसङ्गेन महावृष्टिविधायिनः ॥ ३९॥ अनूपेऽपि यदा क्रूर-ग्रहवेधो हि सम्भवेत् । तदा जीवाः पुद्गलाश्च स्वल्पाः स्युजलयोनिकाः ॥४०॥ अनावृष्टिस्तदादेश्याः स्वभावस्य विपर्ययात् । ततो यथोदितं वीक्ष्य सर्वदेशेषु वाईलम् ॥४१॥ यदाह मेघमालाकार:----- मेषसंक्रान्तिकालान्तु नवस्वपि दिनेष्वथ । यत्राभ्र वातो विद्युद् वप्याादौ तत्र वर्षति ॥४२॥ यद्वात्र नवयामेषु वाताभ्रादिविनियः । यस्यां दिशि यत्र यामे दिगधिष्ण्ये तत्र वर्षति ॥ ४३ ॥ को श्री वी जिन ने कहा है कि उन उत्पात को जानने से बुद्धिमान् स्वयं अच्छे ज्ञान को प्राप्त कर सकते हैं ॥३७॥ जर देश में बहुत से जलयोनि के पौगलिक जीव स्तभाव से ही उत्पन्न · होते हैं, तब बड़ी वर्षा होती है, उसको उत्पात नहीं कहना चाहिये ॥३८॥ इसी तरह जांगल देश में भी बहुत से जलयोनि के जीव हैं वे शुभग्रह के प्रसंग से बड़ी बर्षा करने वाले हैं । ॥३६॥ जल नय प्रदेश में भी जब क्रूर ग्रह का वेध हो तब जलयोनि के जीव और पुद्गल थोड़े होते हैं ॥४०॥ स्वभाव में जब कुछ फेरफार देख पड़े तब अावृष्टि कहना, इसलिये सब देश में बद्दल को देखकर ही यथायोग्य कहता ॥४१॥ मेषसंक्रांति के समय से नव दिनों जब बद्दल, वयु और विजली हो तब क्रमसे आादि नव नक्षत्रों में वर्षा होती है ॥४२॥ वैसे नव प्रहर में भी वायु-बदल आदि का निर्णय करना, "Aho Shrutgyanam
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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