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________________ (२७८) मेघमहोदये क्षीराणि सर्वाणि चकन्दमूल-फलानि पुष्पाणि बहनि तानि॥ रसेश्वरे सूर्यसुते धरियां, दुःखेन लभ्यानि रसायनानि। सुगन्धवस्तूनि घृतेक्षुकन्द-मूलानि चान्यात सुलभं भुषि स्यात्।१ सस्याधिपतिफलम्--- सस्यं चाग्रजधान्यं तदधीशेऽऽल्पसर्वसस्यानि । अतिविपुलं स्वीतिभयं कुलत्थचणकादिसम्पूर्णम् ॥१०॥ सस्यपती तुहिनकरे रमणीयजनाश्रया स्मृताधरणी। फलपुष्पसस्यवारिभिरमिता ह्यधिराजसौख्यसुता ॥१०॥ सीदन्ति सस्यनिचया भुवि भौमे सस्यपे किलोमभयात् । अपराखिलधान्यभयं क्वचित् क्वचिद् भवति सस्यभयम् ॥४॥ अनिलहतं सस्थमिदं कचिद् भवेन्मध्यवृष्टिसम्पन्नम्। शशितनये सस्यपतौ त्वपरं धान्यं प्रभूतफलम् ॥१०॥ सस्यपतौ दिविजगुरौ बहुविधसस्यार्थवृष्टिसम्पूर्णा । प्रकारके रस, कंदमूल, फल और पुष्प ये सब बहुत उत्पन्न हो ॥१०॥ शनैश्चर रसाधिपति हो तो पृथ्वी में रसायन, सुंगधित वस्तु, घी, गुड, कंदमूल आदि ये सब कष्टसे प्राप्त हों और सब सुलभ हों ।। १०१ ॥ जिस वर्षमें सस्याधिपति सूर्य हो उस वर्षमें सब प्रकार के धान्य थोड़े हों, ईतिका भय अधिक हो और कुलथी चणा आदि पूर्ण उत्पन्न हों ॥१०॥ चंद्रमा धान्याधिपति हो तो मनुष्यों को आश्रय करने लायक मनोहर पृथ्वी हो, फल पुष्प धान्य और जलसे पूर्ण ऐसी राजाओंको सुख देनेवाली पृथ्वी हो॥१०३।। मंगल धान्येश हो तो पृथ्वी पर धान्य के समूह नाश करें, उष्णता का भयसे समस्त प्रकार के धान्य का भय रहे और क्वचित् सस्य भय हो ॥ १०४ ॥ बुध धान्यपति हो तो मध्यम वर्षा से उत्पन्न हुए धान्य वायुसे क्वचित् विनाश हो और दूसरे धान्य तथा फल अधिक हो ॥१०५॥ बृहस्पति धान्येश हो तो बहुत प्रकार के धान्य और वर्षा पूर्ण हो, टंकन तथा "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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