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________________ वर्षराजादिकफलम् (२६७) प्रशाम्यति व्याधितरो नराणां सुखं प्रजानामुदयो नृपाणां । ३३ भौमे नृपे वह्निमयं जने स्था-चौराकुलत्वं नृपविग्रहश्च । दुःस्थाः प्रजा व्याधिवियोगपीडा, क्षिप्रं जलं वर्षति भूमिखण्डे ॥ बुधस्य राज्ये सजलं महीतलं गृहे गृहे तूर्य विवाहमङ्गलम् ! सौख्यं सुभिक्षं धनधान्यसङ्कुलं, वसुन्धरायां नृपनन्दगोकुलम् ॥ गुरौ नृपे वर्षति सर्वभूतले, पयोधराः कामदुघाश्च धेनवः । सर्वत्र लोका बहुदानतत्पराः, पराभवो नैव सदैव नन्दनम् ॥३६॥ शुक्रस्य राज्ये बहुधान्यसम्पदो, वृक्षाः फलाढ्या बहुगोप्रसृतयः । प्रभूततोयं मधुराभ्रपाचनं, प्रसन्नदैन्यं सजलं भुवस्तलम् |३७| | शनौ घनो वर्षति खण्डशः क्षितौ, जनास्तु रोगा उदिताः प्रभञ्जनाः करा नृपाणां विषमाञ्च तस्करा, भ्रमन्ति लोका बहुधा क्षुधातुराः ॥ वर्षमन्त्रिफलम् - शान्त हो प्रजाको सुख और राजाका उदय हो ||३३|| मंगल राजा हो तो अमिका भय, मनुष्यों में चोरोंकी आकुलता, राजाओं में विग्रह, प्रजा व्याधि और वियोग की पीडा से दुःखी हो और पृथ्वी पर शीघ्र ही जलवर्षा हो ॥ ३४ ॥ बुध राजा हो तो भूमितल जलमय हो याने वर्षां अच्छी हो, घर घरमें विवाह मंगलके बाजे बजे, मुख सुभिक्ष और धन धान्यसे भूमि पूर्ण हो सभी राजा और गौ आनंदित हो || ३५ ॥ बृहस्पति राजा हो तो समस्त पृथ्वी पर वर्षा हो, गौ इच्छानुसार दूध दें, सब जगह लोगदान देने में तत्पर हो, पराभव न होकर सदा आनंद रहे || ३६ || शुक्र राजा हो तो धान्य बहुत हो, वृक्ष फलोस पूर्ण हो, गौ बहुत दूध दे, वर्षा अधिक हो, 1 -मीठे अम बहुत हो, प्रसन्नता रहे और भूमितल पर वर्षा अच्छी हो || ३७ || शनि राजा हो तो पृथ्वी पर खंडवृष्टि हो, मनुष्य रोगोंसे: पीडित हो, महान वायु चले, राजाओंके कर (टेक्स) असह्य हो, चोरोंका ate और लोक मासे व्याकुल होकर भ्रमण करते फिरें ॥३८॥ " Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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