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________________ (२३०) मेघमहोदये तत्तिथिधिष्ण्यवाच्यानि महर्षाणि भवन्ति हि॥७६।। आषाढयोईयोर्मध्ये यदा पर्वत्रयं भोत् । क्षितौ भवेन्महायुद्धं नृएमृत्युं समादिशेत् ॥७॥ यत्र राशौ भवे पर्व, तस्थ वाच्यं क्रयाणकम् । प्रत्यर्घ लभते मूल्यं पीड्यमानं च राहुणा ॥७॥ लोकेऽपि-सीसे गुरुने पूछीओ हीइ इस्यो विचार । मागसिर ससिगहण हुई प्रजा करेसी भार ७६।। कत्तियमासे रविगहण जइ हुइ धरणिसुएण। अंगणगणना विना मरे सुभटनी सेण ॥८॥ एवं वर्षाधिपपरिणते-वत्सरः श्रीगुरोः स्याद्, नक्षत्राख्यः सकलजगति वर्षयोधस्य बीजम् । मन्दस्यापि प्रकटमहिमा वत्सरः स्वीयनान्ना, मत्वा तत्वादु यमिदमितो भाविवर्ष विचार्यम्॥८॥ नक्षत्र के नाम सदृश वस्तुओं का भाव तेज हो ॥ ७६ ॥ श्रापाढादि दो मासमें यदि तीन पर्व (ग्रहण) हो तो पृथ्वामें दड़ा युद्ध हो और राजाओं का विनाश हो ॥ ७७ ॥ जिस राशि पर ग्रहण हो उस राशिवाली वेचनेकी वस्तु बहुत महँगी हों किंतु राहुमे वेधित हो तो उससे इत्र्य प्राप्ति हो ॥७८|| शिज्यने गुरुको ग्रहणका विचार पूछा है - मार्गशीर्ष चन्द्रमा का ग्रहण हो तो प्रजाके पर भा' (कष्ट) रहे॥७६॥ यदि कार्तिक मासमें सूर्य ग्रहण हो और मंगल साथ हो तो गृहकुटुंब बिना मुभद (योद्धा) की सेनाका विनाश हो ॥ ८० ॥ इस प्रकार वर्षाधिपकी परिणतिस नक्षत्रनामका बृहस्पतिका संवत्सर है यह समस्त जगत् में वर्षबोध का बीजरूप है और अपने नाम सदृश प्रगट प्रभाववाला शनिका वर्ष है, ये दोनों तत्वोंसे मानकर भाविवर्ष का विचार करना चाहिये ।। ८१ ॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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