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________________ राहुचारफलाम् (२२३) कांस्यं च लाक्षा. मनिष्ठा शुंठीमरिचहिंगवः ।, एषां संग्रहणं कार्य षण्मासायधिनिश्चितम् ॥३३॥ मेषराशौ यदा राहुः संस्थितश्चन्द्रसूर्ययोः। देवाद् ग्रहणसंयोगे दुर्भिक्षं भवति ध्रुवम् ॥३४॥ इतिराहुः। द्वादशराशिषु ग्रहणेन राहुफलम् ... उपरागो यदा मेषे पीड्चत्तेऽयं तदा जनः । काम्बोजांधि किराताश्च पाञ्चालाभ्य तैलबकाः ॥ ३५ ॥ वृषे च ग्रहणे गोपाः पशवः पथिका जनाः । महान्तो मनुजा ये च तेषां पीडा गरीयसी ।। ३६ ॥ सूर्यचन्द्रमसोमा॑सो मिथुने च वराङ्गाना। पीडन्यन्ते पाल्हिका वत्सा (लोका) यमुनातटवासिनः ॥३७॥ कर्कटे ग्रहणे पीडा गर्दभानां च जायते । प्राभीरधर्षराणां च पीडा च महती मता ॥ ३८॥ सिंहे च ग्रहणे पीडा सर्वेषां वनवासिनाम् । नृपाणां नृपतुल्यानां मनुजानां धनक्षयः ॥ ३६ ।। कांसी लाख मँजीठ सोंठ मिर्च और हिंगु (हींग) इनका भी छः महीने तक मवश्य संग्रह करना चाहिए ॥ ३३॥ जब मेषराशिमें राहु हो, तब देवयोगसे सूर्य या चन्द का ग्रहण भी हो तो निश्चयसे दुश्काल हो ॥३४॥ .. मेषराशिके ग्रहण में मनुव्योंको पीडा, तथा कंबोज, अंध्र, किरात, पांचाल और तैलंगदेशमें पीड़ा हो ॥ ३५ ॥ वृषराशिक. ग्रहण में गोप (गौ पालक), पशु, मुसाफिर लोग और बड़े लोगोंको पीडा हो ॥३६॥ मिथुनराशिमें सूर्य चन्द्रमाका ग्रहण हो तो वेश्या, बाल्हिक देशके और यमुना नदीके. तट पर वसनेवाले लोगोंको पीड़ा हो ॥ ३७॥ कर्कराशि में ग्रहण हो तो गर्दभों (गदहों) को तथा आभीर और बर्बरोंको बड़ी पीड़ा हो ॥ ३८ ॥ सिंहराशिके ग्रहण में सब बनवासी दुःखी हों. राजा और "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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