SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ আনন্মাঙ্গেল (२१३) दंष्ट्रायां सा वराहेण विधृतास्ति वसुन्धराः । मुस्ताखननतो यस्यां शोभते मृत्तिका यथा ॥१३॥ ईदृशोऽपि महाकायो वाराह शेषमस्तके । तस्य चूडामणेरूज़ संस्थितो मशकोपमः ॥१४॥ एवंविधः स शेषोऽपि कुण्डलीभूय संस्थितः। कूर्मपृष्ठैकभागेन सूत्रे तन्तुरिवायभौ ॥१५॥ वपुः स्कन्धः शिरः पुच्छ मुखांघ्रिप्रभृतीनि च । माने मानेन कूर्मस्य कथयन्ति च तद्विदः ॥१६॥ क्रोशः शतसहस्त्राणि योजनानि वपुः स्थितम् । तर्द्धन भवेत् पुच्छं पुच्छार्द्धन तु कुक्षिके ॥१७॥ ग्रीवा चायुतकोटिस्था मस्तकं सप्तकोटिभिः। नेत्रयोरन्तरं तस्य कोटिरेका प्रमाणतः ॥१८॥ मुखं कोटिद्वयं तस्य द्विगुणेन तु पादयोः । हैं वैसे सागर (समुद्र) और द्वीप भी आठ आठ हैं. वे सब पृथिवी पर हैं, ॥१२॥ ऐसी पृथिवी को वराहावतारने दांतके अग्रभाग पर ऐसे धारण किया है, जैसे वराह मुस्ता (नागरमोथा) खोदनेसे दांत पर मिट्टी शोभती है॥१३॥ इतना बड़ा शरीरवाला वराह शेषनागके मस्तक पर मशक ( मच्छर ) के सदृश रहा हुआ है ॥ १४ ॥ इस प्रकार वह शेष नाग भी वर्तुलाकार (गोल) होकर रहा है, जिससे कि कुर्मक पीटके एक भागमें ऐसा शोभता है जैसे सूतमें रहा हुअा तंतु शोभा पाता है ! १५॥ उसका माप, कूर्म का शरीर स्कंध मस्तक पुच्छ मुख और चरण आदिके मानसे ज्योतिर्विदोंने इस प्रकार कहा हैं -- ॥१६॥ उसका एक लाख योजनका शरीर है, शरीर से आधा पुच्छ है, पुच्छ से प्राधा पेट है ॥ १७॥ दश हजार करोड योजन . लंबी. ग्रीवा (गला) है, सात करोड़ योजनका मस्तक है, दोनों नेत्रों का . अंतर एक करोड़ योजनका है ॥ १८ ॥ दो करोड़ योजनका मुख है, : "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy