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________________ मेघमहोदये शनैश्वरप्रचारेण ज्ञातव्यं वर्षहेतवे ॥ १ ॥ वृषे यदा शनिस्तदा विग्रहो दक्षिणदिशि परचक्र भयम्, वराडदेशेऽस्वस्थता, पश्चिमापतिर्दक्षिणस्यां याति देशा उदसा अन्नं महर्ष, गोधूमचणकलवणव्यापारे लाभः सुवर्णरूप्यपित्तलकांश्यलोहव्यापारे लाभो मासषट्कं यावत्, भाषाढादिमासत्रये लाभः, आशोरदेशे युद्धं म्लेच्छहिन्दुकयोः क्षयः, हिन्दुराजस्य जयः भाद्रपदे अहिफेनाल्लाभः, देवगढदेशे विग्रहः, दुर्गभङ्गः शनैश्चरस्य राशिभोगे एकवर्षानन्तरं वस्तुमहर्घता तन्मध्येऽजमकस्तस्य माघमासे विक्रये लाभ: । ' इत्येद् गौतमस्वामि, इत्यादि पूर्ववत् ॥ २ ॥ " मिथुने शनिस्तदा पश्चिमायां दुर्भिक्षं, राजविग्रहः, मालवदेशे विरोधः, राशिभोगान्मासपञ्चकतः पञ्चादुज्जयिन्यामुस्पातः दुर्गभंग: मासद्वयात् परं दुर्भिक्षं मासैकयावत ततो वत्सरे शुभं धान्यनिष्पत्तिः पूर्वदेशे उत्पात, गुडे इस तरह राशिमण्डल गौतमस्वामी ने कहा, वह शनैश्चर चालनसे वर्षा के लिये जानना चाहिये ॥ १ ॥ (२००) 5 3 > जब वृषराशिका शनि हों तब विग्रह हो, दक्षिण दिशा में शत्रुका भय, बराडदेश में अशान्ति, पश्चिमका पति दक्षिण चले जाय, देशका उजाड अन्नभाव तेज, गेहूँ चणा नमक के व्यापार में लाभ, सोना चांदी पित्तल कांसी लोहाका व्यापार में छमास तक लाभ, आषाढादि तीनमास लाभ, आशोरदेशमें युद्ध, म्लेच्छ और हिन्दूका विनाश, हिन्दूराजका विजय, भादोंमें अफीम से लाभ, देवगढदेश में विप्रह, दुर्गभंग, शनि का राशिभोग में एकवर्ष होनेबाद वस्तु महँगी, उसमें अजवायन को मात्रमासमें बेचने से लाभ हो ॥ २ ॥ जब मिथुन राशिका शनि हो तब पश्चिममें दुर्भिक्ष, राजाओंका विग्रह, मालवा देश में विरोध, राशिभोगसे पांचमास जानेबाद उज्जयिनी में उत्पात, "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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