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________________ ॥ श्री वीतरागाय नमः ॥ ॥श्रीमेघमहोदयो-वर्षप्रबोधः॥ (भाषाटीकासमेतः) ग्रन्थकारस्य मंगलाचरणम् । श्री तीर्थनाथवृषभं प्रभुमाश्वसेनि, शलेश्वरं नतसुरेन्द्रनरेन्द्रघन्द्रम् । ध्यापन समेघविजयं सुखमावबुद्धन्यै, शास्त्रं करोमि किल मेघमहोदयार्थम् ॥१॥ येनायं प्रभुपाबमाप्तवृषभं विश्वैकवीरं हृदि । - स्मारस्मारमहर्निशं पटुधिया ग्रन्थाः समभ्यस्यते । प्रेधा तस्य सुवर्णसिद्धिकमला मेधावलात् प्रैधते, राजद्राजसभासु भासुरतया कीर्तिर्नरीसत्यते ॥२॥ नत्वा जिनेन्द्रं प्रभुपार्श्वनाथ, देवासुरैरचितपादपभम् । वर्षप्रबोधस्य करोमि टीका, बालावबोवाय सुभाषयाहम् ॥ १॥ भावार्थ--देवेन्द्र नरेन्द्र और चन्द्र मादि जिन को नमस्कार करते हैं, ऐसे धनेन्द्र पद्मावती सहित तीर्थकर श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथ प्रभु का ध्यान करता हुभा, मेघ के उदय के अर्थ को सुखपूर्वक जानने के लिये मैं ( महामहोपाध्याय श्रीमेघविजयगणि ) मेघमहोदय है अर्थ जिस का ऐसे मेघमहोदय नाम के अन्य को बनाता हूं ॥१॥ श्रेष्ठों में श्रेष्ठ और जगत् में एक वीर ऐसे श्रीपार्श्वनाथ प्रभु को हृदय में निरंतर स्नरम करके जो बुद्धिमान् इस ग्रन्थ का अभ्यास करता है, उसको तीन प्रकार की विद्या, सिद्धि और लक्ष्मी बुद्भिबल से प्राप्त होती है, और बड़ी २ शोभायमान राजसभाओं में विशेष प्रकाश रूप से उसकी कीर्ति भी अत्यन्त नाचती है याने फैलती है ॥ २ ॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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